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पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक]
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__ [९८१-२] इसी प्रकार (चक्षुरिन्द्रिय से लेकर) स्पर्शनेन्द्रिय (तक के मृदु-लघु गुण के विषय में कहना चाहिए ।)
९८२. एतेसि णं भंते ! सोइंदिय-चक्खिदिय-घाणिंदिय-जिब्भिंदिय-फासिंदयाणं कक्खडगरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाणं कक्खडगरुयगुण-मउयलहुयगुणाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा ४?
गोयमा ! सव्वत्थोवा चक्खिदियस्स कखडगरुयगुणा, सोइंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, घाणिंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, जिभिदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासिंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा; मउयलहुयगुणाणं - सव्वत्थोवा फासिंदियस्स मउयलहुयगुणा, जिब्भिंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, घाणिंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, सोइंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, चक्खिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणाः कक्खडगरुयगुणाणं मउयलहुयगुणाण य - सव्वत्थोवा चक्खिदिस्स कक्खडगरुयगुणा, सोइंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, घाणिंदियस्स कक्खडगरुयगुणा, अणंतगुणा, जिभिंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासिंदियस्स कक्खडगरुयगुणा अणंतगुणा, फासिंदियस्स कक्खडगरुयगुणेहिंतो तस्स चेव मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, जिब्भिंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, घाणिंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, सोइंदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा, चक्खिदियस्स मउयलहुयगुणा अणंतगुणा।
[९८२ प्र.] भगवन् ! इन श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कशगुरु -गुणों और मृदु-लघु-गुणों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
[९८२ उ.] गौतम ! सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुण हैं, (उनसे) श्रोत्रेन्द्रिय के कर्कशगुरु-गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) घ्राणेन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुण अनन्तगुणें हैं, (उनसे) जिह्वेन्द्रिय के कर्कशगुरु-गुण अनन्तगुणे हैं (और उनसे) स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरु-गुण अनन्तगुणे हैं। मृदु-लघु गुणों में सेसबसे थोड़े स्पर्शनेन्द्रिय के मृदु-लघुगुण हैं, (उनसे) जिह्वेन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे है, (उनसे) घ्राणेन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) श्रोत्रेन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) चक्षुरिन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं। कर्कश-गुरुगुणों और मृदु-लघुगुणों में से सबसे कम चक्षुरिन्द्रिय के कर्कशगुरुगुण हैं, (उनसे) श्रोत्रेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) घ्राणेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) जिह्वेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) स्पर्शेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण अनन्तगुणें हैं। स्पर्शनेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुणों से उसी के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) जिह्वेन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) घ्राणेन्द्रिय के मृदु-लघु-गुण अनन्तगुणे हैं, (उनसे) श्रोत्रेन्द्रिय के मृदुलघुगुण अनन्तगुणे है, (और उनसे भी) चक्षुरिन्द्रिय के मृदु-लघुगुण अनन्तगुणे हैं।