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। प्रज्ञापनासूत्र
प्रथम संस्थानद्वार
९७४.[१] सोइंदिए णं भंते ! किंसंठिते पण्णत्ते ? गोयमा ! कलंबुयापुष्फसंठाणसंठिए पण्णत्ते । [९७४-१ प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय किस आकार की कही गई है ? [९७४-१ उ.] गौतम ! (वह) कदम्बपुष्प के आकार की कही गई है। [२] चक्खिदए णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते? गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पन्नत्ते? [९७४-२] भगवन् ! चक्षुरिन्द्रिय किस आकार की कही गई है ? [९७४-२] गौतम ! (चक्षुरिन्द्रिय) मसूर-चन्द्र के आकार की कही है। [३] पाणिदिए णं पुच्छा। गोयमा ! अइमुत्तगपुष्युसंठाणसंठिए पण्णत्ते । [९७४-३ प्र.] भगवन् ! घ्राणेन्द्रिय का आकार किस प्रकार का है ? यह प्रश्न है ? [९७४-३ उ.] गौतम ! (घ्राणेन्द्रिय) अतिमुक्तकपुष्प के आकार की कही है। [४] जिभिदिए णं पुच्छा । गोयमा ! खुरप्पसंठाणसंठिए पण्णत्ते। [९७४-४ प्र.] भगवन् ! जिह्वेन्द्रिय किस आकार की है ? यह प्रश्न है । [९७४-४ उ.] गौतम ! (जिह्वेन्दिय) खुरपे के आकार की है। [५] फासिदिए णं पुच्छा। गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । [९७४-५ प्र.] भगवन् ! स्पर्शेन्द्रिय के आकार के लिये प्रश्न है ? [९७४-५ उ.] गौतम ! स्पर्शेन्द्रिय नाना प्रकार के आकार की कही गई है।
विवेचन - प्रथम संस्थानद्वार - पांच इन्द्रियों के आकार का निरूपण - प्रस्तुत सूत्र में पांचों इन्द्रियों के आकार का निरूपण किया गया है।
द्रव्येन्द्रिय का निर्वृत्तिरूप भेद ही संस्थान - प्रत्येक इन्द्रिय के विशिष्ट और विभिन्न संस्थान-विशेष