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________________ पन्द्रहवाँ इन्द्रियपद : प्रथम उद्देशक ] [१५९ अप्रविष्ट सम्बन्धी चर्चा है, (९)विषयद्वार - इसमें विषयों के परिमाण का वर्णन है, (१०) अनगारद्वार - इसमें अनगार से सम्बन्धित सूत्र हैं,(११) आहारद्वार - इसमें आहारविषयक सूत्र हैं, (१२) आदर्शद्वार - इसमें दर्पणविषयक निरूपण है, (१३) असिद्वार - इसमें असि-सम्बन्धित प्ररूपणा है, (१४) मणिद्वार - मणिविषयक वक्तव्य,(१५) उदपानद्वार - उदकपान अथवा उडुपानविषयक प्ररूपणा (अथवा दुग्ध और पानविषयक प्ररूपणा), (१६) तैलद्वार - इसमें तैलविषयक वक्तव्य है, (१७) फाणितद्वार - इसमें फाणित (गुड़राब) के विषय में प्ररूपणा है, (१८) वसाद्वार - इसमें वसा (चर्बी) के विषय मे वर्णन है, (१९) कम्बलद्वार - इसमें कम्बलविषयक निरूपण है, (२०) स्थूणाद्वार - इसमें स्थूणा (स्तूप या ढूंठ) से सम्बन्धित निरूपण है,(२१)थिग्गलद्वार - इसमें आकाशथिग्गल विषयक वर्णन है, (२२)द्वीपोदधिद्वारइसमें द्वीप और समुद्र विषयक प्ररूपणा है, (२३) लोकद्वार - लोकविषयक वक्तव्य, और (२४)अलोकद्वारअलोक सम्बन्धी प्ररूपणा है। इन्द्रियों की संख्या ९७३. कति णं भंते ! इंदिया पण्णत्ता ? ‘गोयमा ! पंचइंदिया पण्णत्ता। तं जहा - सोइंदिए १ चक्खिदिए २ घाणिदिए ३ जिभिदिए ४ फासिंदिए ५ । [९७३ प्र.] भगवन् ! इन्द्रियाँ कितनी कही गई हैं ? [९७३ उ.] गौतम ! पांच इन्द्रियाँ कही हैं। वे इस प्रकार - (१) श्रोत्रेन्द्रिय, (२) चक्षुरिन्द्रिय, (३) घ्राणेन्द्रिय, (४) जिह्वेन्द्रिय और (५) स्पर्शेन्द्रिय ।। विवेचन - इन्द्रियों की संख्या - प्रस्तुत सूत्र में श्रोत्रेन्द्रिय आदि पांच इन्द्रियों की प्ररूपणा की गई है। अन्य दार्शनिक मन्तव्य - सांख्यादि दर्शनों में श्रोत्रेन्द्रिय आदि पांच इन्द्रियों को ज्ञानेन्द्रिय कहा गया है तथा वाक्, पाणि (हाथ), पाद (पैर), पायु (मूत्रद्वार) और उपस्थ (मलद्वार), इन पांच इन्द्रियों को कर्मेन्द्रिय कहा गया है। किन्तु पांच कर्मेन्द्रियों की मान्यता युक्तिसंगत नहीं है। जैनदर्शन में द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय के रूप से प्रत्येक के दो-दो भेद तथा द्रव्येन्द्रिय के निर्वृत्ति और उपकरण एवं भावेन्द्रिय के लब्धि और उपयोग रूप दो-दो प्रकार बताये गये हैं। इनका निरूपण इसी पद के द्वितीय उद्देशक में किया जायेगा। १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २९३ . २. (क) सांख्यकारिका, योगदर्शन (ख) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २९३ (ग) 'निर्वृत्त्युपकरणे द्रव्येन्द्रियम्', 'लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम्'- तत्त्वार्थसूत्र अ. २, सू. १७, १८
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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