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[प्रज्ञापनासूत्र
[९६५-१ प्र.] भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करते हैं ?
[९६५-१ उ.] गौतम ! चार कारणों से जीव कर्मप्रकृतियों का चय करते हैं, वे इस प्रकार हैं - (१) क्रोध से, (२) मान से, (३) माया से और (४) लोभ से ।
[२] एवं णेरइया जाव वेमाणिया । [९६५-२] इसी प्रकार नारकों से लेकर वैमानिकों तक के (विषय में प्ररूपणा करनी चाहिए ।) ९६६.[१] जीवा णं भंते ! कइहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति ?
गौयमा ! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ चिणिस्संति । तं जहा - कोहेणं १ माणेणं २ मायाए ३ लोभेणं ४ ।
[९६६-१ प्र.] भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करेगें?
[९६६-१ उ.] गौतम ! चार कारणों से जीव आठ कर्मप्रकृतियों का चय करेंगे, वे इस प्रकार हैं - (१) क्रोध से, (२) मान से, (३) माया से और (४) लोभ से ।
[२] एवं णेरइया जाव वेमाणिया। [९६६-२] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक के (विषय में प्ररूपणा करनी चाहिए।) ९६७.[१] जीवा णं भंते ! कइहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उवचिणिंसु ।
गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ उचचिणिंसु । तं जहा - कोहेणं १ माणेणं २ मायाए ३ लोभेणं ४ । __ [९६७-१ प्र.] भगवन् ! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का उपचय किया है ?
[९६७-१ उ.] गौतम! जीवों ने चार कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का उपचय किया है, वे इस प्रकार हैं-(१) क्रोध से, (२) मान से, (३) माया से और (४) लोभ से ।
[२] एवं णेरड्या जाव वेमाणिया । [९६७-२] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक के (विषय में समझना चाहिए। ९६८.[२] जीवा णं भंते ! पुच्छा। गौयमा ! चउहिं ठाणेहिं उवचिणंति-कोहेणं १ जाव लोभेणं ४ । [९६८-१ प्र.] भगवन् ! जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का उपचय करते हैं ? [९६८-१ उ.] गौतम! चार कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का उपचय करते हैं, वे इस प्रकार हैं -