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चौदहवाँ कषायपद]
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(१) क्रोध से, (२) मान से, (३) माया से और (४) लोभ से ।
[२] एवं णेरइया जाव वेमाणिया । [९६८-२] इसी प्रकार नैरयिकों से लेकर यावत् वैमानिकों तक (के विषय में कहना चाहिए।) ९६९. एवं उवचिणिस्संति ।
[९६९] इसी प्रकार (पूर्वोक्त चार कारणों से जीव आठ कर्मप्रकृतियों का) उपचय करेंगे, (यह कहना चाहिए ।)
९७०. जीवा णं भंते ! कइहिं ठाणेहिं अट्ठ कम्मपगडीओ बंधिसु ३? गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं । तं जहा-कोहेणं १ जाव लोभेणं ४ । [९७० प्र.] भगवन् ! जीवों ने कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों को बांधा है ?, बांधते हैं, बांधेगें?
[९७० उ.] गौतम! चार कारणों से जीवों ने आठ कर्मप्रकृतियों को बांधा है, बांधते है और बांधेगें, वे इस प्रकार हैं - क्रोध से यावत् लोभ से ।
९७१. एवं णेरइया जाव वेमाणिया बंधेसु बंधंति बंधिस्संति, उदीरेंसु उदीरंति उदीरिस्संति, वेइंसु वेएंति वेइस्संति, निज्जरेंसु निजरिति णिज्जरिस्संति। एवं एते जीवाईया वेमाणियपज्जवसाणा अट्ठारस दंडगा जाव वेमाणिया णिज्जरिसु णिज्जति णिज्जरिस्संति ।
आयपइट्ठिय खेत्तं पडुच्चऽणताणुबंधि आभोगे । चिण उवचिण बंध उईर वेय तह निजरा चेव ॥२०१॥
॥पण्ण्वणाए भगवतीए चोद्दसमं कसायपयं समत्तं ॥ [९७१] इसी प्रकार नैयिकों से वैमानिकों तक के (जीवों ने) (पूर्वोक्त चार कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों को) बांधा, बांधते हैं और बांधेगें ; उदीरणा की, उदीरणा करते हैं और उदीरणा करेंगे तथा वेदन किया (भोगा), वेदन करते (भोगते) हैं और वेदन करेंगे (भोगेंगे), (इसी प्रकार) निर्जरा की, निर्जरा करते हैं और निर्जरा करेंगे ।
इस प्रकार समुच्चय जीवों तथा नैरयिकों से लेकर वैमानिकों पर्यन्त आठ कर्मप्रकृतियों के चय, उपचय, बन्ध, उदीरणा, वेदन एवं निर्जरा की अपेक्षा से छह, तीनों (भूत,वर्तमान एवं भविष्य) काल के तीन-तीन भेद के कुल अठारह दण्डक (आलापक) वैमानिकों ने निर्जरा की, निर्जरा करते हैं तथा निर्जरा करेंगे, (तक कहने चाहिए ।)
[संग्रहणी गाथार्थ-] (प्रस्तुत प्रकरण में) आत्मप्रतिष्ठित क्षेत्र की अपेक्षा से, अनन्तानुबन्धी (आदि