SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चोद्दसमं कसायपयं चौदहवाँ कषायपद कषाय और उसके चार प्रकार ९५८. कति णं भंते ! कसाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता । तं जहा - कोहकसाए १ माणकसाए २ मायाकसाए ३ लोहकसाए ४ । [९५८ प्र.] भगवन् ! कषाय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [९५८ उ.] गौतम ! (वे) चार प्रकार के कहे गए हैं । वे इस प्रकार - (१) क्रोधकषाय, (२) मानकषाय, (३) मायाकषाय और (४) लोभकषाय । विवेचन - कषाय और उसके चार प्रकार - प्रस्तुत सूत्र में कषाय के क्रोधादि चार प्रकारों का उल्लेख किया गया है। कषाय की व्याख्या - कषाय शब्द के तीन व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ मिलते हैं-(१) कष अर्थात् संसार, उसका आय-लाभ जिससे हो, वह कषाय है । (२) 'कृष' धातु विलेखन अर्थ में है, उससे भी कृष को कष आदेश हो कर 'आय' प्रत्यय लगने से कषाय शब्द बनता है । जिसका अर्थ होता है-जो कर्मरूपी क्षेत्र (खेत) को सुख-दुःखरूपी धान्य की उपज के लिए विलेखन (कर्षण) करते हैं-जोतते हैं, वे कषाय हैं । (३) 'कलुष' धातु को 'कष' आदेश हो कर भी कषाय शब्द बनता है । जिसका अर्थ होता है-जो स्वभावतः शुद्ध जीव को कलुषित-कर्ममलिन करते हैं, वे कषाय हैं। १. (क) आचारांग शीलांक. वृत्ति, (ख) प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २८९ (ग) 'कषः संसारः, तस्य आयः लाभ:-कषायः ।' (घ) 'कृषन्ति विलिखन्ति कर्मरूपं क्षेत्रं सुखदुःखशस्योत्पादनायेति कषायाः ।' 'कलुषयन्ति शुद्धस्वभावं सन्तं कर्ममलिनं कुर्वन्ति जीवमिति कषायाः ।' (ङ) 'सुहदुक्खबहुस्सइयं कम्मखेत्तं कसंति ते जम्हा । कलुसंति जंच जीवं तेण कसायत्ति वुच्चंति ॥'
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy