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[प्रज्ञापनासूत्र
इनकी व्याख्या पूर्वोक्तवत्- संस्थानपरिणाम,भेदापरिणाम, वर्णपरिणाम, गन्धपरिणाम, रसपरिणाम और स्पर्शपरिणाम की व्याख्या पहले पर्यायपद, भाषापद आदि में की जा चुकी है ।
___ अगुरुलघुपरिणाम-'कम्मग-मण-भसाइंएयाइं अगुरुलघुयाई' - अर्थात् कार्मणवर्गणा, मनोवर्गणा एवं भाषावर्गणा, ये अगुरुलघु होते है, इस आगमवचन के अनुसार उपर्युक्त पदार्थों को तथा अमूर्त आकाशादि द्रव्यों को भी अगुरुलघु समझना चाहिए । प्रसंगवश यहाँ गुरुलघुपरिणाम को भी समझ लेना चाहिए । औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तैजस गुरुलघु होते हैं।
॥प्रज्ञापनासूत्र : तेरहवाँ परिणामपद समाप्त ॥
१.
२.
इसके लिए देखिये प्रज्ञापना. का पर्यायपद और भाषापद आदि । 'ओरालिय-वेउब्विय-आहारग-तेय गुरुलहूदव्वा' -प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पत्र २८९ में उद्धृत । प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २८९.