SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तेरहवां परिणामपद ] [ १४५ बन्धनपरिणाम के नियम - स्निग्ध का तथा रूक्ष का बन्धनपरिणाम किस प्रकार एवं किस नियम से होता है ? इसे शास्त्रकार दो गाथाओं द्वारा समझाते हैं - यदि पुद्गलों में परस्पर समस्निग्धता - समगुणस्निग्धता होगी तो उनका बन्ध (बन्धन) नहीं होगा, इसी प्रकार पुद्गलों में परस्पर समरूक्षता - समगुणरूक्षता (समान अंश - गुणवाली रूक्षता) होगी तो भी उनका बन्ध नहीं होगा। तात्पर्य यह है कि समगुणस्निग्ध परमाणु आदि का समगुणनिध परमाणु आदि के साथ सम्बन्ध (बन्ध) नहीं होता; इसी प्रकार समगुणरूक्ष परमाणु आदि के साथ बन्ध नहीं होता; किन्तु स्निग्धत्व और रूक्षत्व की विषममात्रा होती है, तभी स्कन्धों का बन्ध होता है । अर्थात् - स्निग्ध स्कन्ध यदि स्निग्ध के साथ और रूक्ष स्कन्ध यदि रूक्ष स्कन्ध के साथ विषमगुण होते हैं, तब विषममात्रा होने के कारण उनका परस्पर सम्बन्ध (बन्ध) होता है । निष्कर्ष यह है कि बन्ध विषम मात्रा होने पर ही होता है। अतः विषममात्रा का स्पष्टीकरण करने हेतु शास्त्रकार फिर कहते हैं- यदि स्निग्धपरमाणु आदि का, स्निग्धगुण वाले परमाणु आदि के साथ बन्ध हो सकता है तो वह नियम से दो आदि अधिक (द्वयाद्यधिक) गुण वाले परमाणु के साथ ही होता है; इसी प्रकार यदि रूक्षगुण वाले परमाणु आदि का रूक्षगुण वाले परमाणु आदि के साथ बन्ध होता है, तब वह भी इसी नियम से दो, तीन, चार आदि अधिक गुण वाले के साथ ही हो सकता है, अन्यथा नहीं। जब स्निगध और रूक्ष पुद्गलों का परस्पर बन्ध होता है,. तब किस नियम से होता है? इसके लिए शास्त्रकार कहते हैं- स्निग्धपरमाणु आदि का रूक्षपरमाणु आदि के साथ बन्ध जघन्यगुण को छोड़ कर होता है । जघन्य का आशय है- एकगुणस्निग्ध और एक - गुणरूक्ष । इनको छोड़कर, शेष दो गुण वाले (स्निग्ध आदि) का दो गुण वाले रूक्ष आदि के साथ बन्ध होता है, चाहे वे दोनों (स्निग्ध और रूक्ष) सममात्रा में हों या विषममात्रा में हों । गतिपरिणाम की व्याख्या- गमनरूप परिणमन गतिपरिणाम है। वह दो प्रकार का है- स्पृशद्गतिपरिणाम और अस्पृशद्गतिपरिणाम । बीच में आने वाली दूसरी वस्तुओं को स्पर्श करते हुए जो गति होती है, उसे स्पृशद्गति कहते हैं । उस गतिरूप परिणाम को स्पृशद्गतिपरिणाम कहते हैं। उदाहरणार्थ- जल पर प्रयत्नपूर्वक तिरछी फैंकी हुई ठीकरी बीच-बीच में जल का स्पर्श करती हुई गति करती है, यह उस ठीकरी का स्पृशद्गतिपरिणाम है। जो वस्तु बीच में आने वाले किसी भी पदार्थ को स्पर्श न करती हुई गमन करती है, वह उसकी अस्पृशद्गति है । वह अस्पृशदगतिरूप परिणाम अस्पृशद्गतिपरिणाम है। जैसे- सिद्ध (मुक्त) जीव सिद्धशिला की ओर गमन करते हैं, तब उनकी गति अस्पृशद्गति होती है । अथवा प्रकारान्तर से गतिपरिणाम के दो भेद प्रतिपादित करते हैं - दीर्घगतिपरिणाम और ह्रस्वगतिपरिणाम । अतिदूरवर्ती देश की प्राप्ति का कारणभूत जो परिणाम हो, वह दीर्घगति परिणाम है और निकटवर्ती देशान्तर की प्राप्ति का कारणभूत जो परिणाम हो, वह ह्रस्वगतिपरिणाम कहलाता है । १. (क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति. पत्रांक २८८ - २८९ (ख) 'स्निग्ध- रूक्षत्वाद् बन्धः ' - तत्त्वार्थसूत्र अ. ५, सू. ३२ (ग) 'न जघन्यगुणानाम्' 'गुणसाम्ये सदृशानाम्' ' द्वयधिकादिगुणानां तु' - तत्त्वार्थसूत्र अ. ५, सू. ३३, ३४, ३५.
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy