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________________ १४४ ] .९५५. फासपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठविहे पण्णत्ते । तं जहा - कक्खडफासपरिणामे य जाव लुक्खफासपरिणामे य । [९५५ प्र.] भगवन् ! स्पर्शपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [९५५ उ.] गौतम ! ( स्पर्शपरिणाम) आठ प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार (१) कर्कश (कठोर) स्पर्शपरिणाम, यावत् [(२) मृदुस्पर्शपरिणाम, (३) गुरुस्पर्शपरिणाम, (४) लघुस्पर्श- परिणाम, (५) उष्णस्पर्शपरिणाम, (६) शीतस्पर्शपरिणाम, (७) स्निग्धस्पर्शपरिणाम और ] (८) रूक्षस्पर्शपरिणाम । ९५६. अगरुयलहुयपरिणामे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! गागारे पण्णत्ते । [९५६ प्र.] भगवन् ! अगुरुलघुपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [९५६ उ.] गौतम ! (अगुरुलघुपरिणाम) एक ही प्रकार का कहा गया I ९५७. सद्दपरिणामे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - सुब्भिसद्दपरिणामे य दुब्भिसद्दपरिणामे य । से त्तं अजीवपरिणामे । - [ प्रज्ञापनासूत्र - ॥ पण्णवणाए भगवईए तेरसमं परिणामपयं समत्तं ॥ [९५७ प्र.] भगवन् ! शब्दपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? [९५७ उ.] गौतम ! ( शब्दपरिणाम) दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार सुरभि ( शुभमनोज्ञ) शब्दपरिणाम और दुरभि (अशुभ- अमनोज्ञ) शब्दपरिणाम । यह हुई अजीवपरिणाम की प्ररूपणा ! विवेचन - अजीवपरिणाम तथा उसके भेद-प्रभेदों की प्ररूपणा प्रस्तुत ग्यारह सूत्रों (सू. ९४७ से ९५७ तक) में से प्रथम सूत्र (९४७) में अजीवपरिणाम के दस भेदों की तथा शेष दस सूत्रों में उन दस भेदों में से प्रत्येक के प्रभेदों की क्रमशः प्ररूपणा की गई है। - T बन्धनपरिणाम की व्याख्या - दो या अधिक पुद्गलों का परस्पर बन्ध (जुड़) जाना, श्लिष्ट हो जाना, एकत्वपरिणाम या पिण्डरूप हो जाना बन्धन या बन्ध है । इसके दो प्रकार हैं- स्निग्धबन्धन - परिणाम और रूक्षबन्धनपरिणाम । स्निग्ध पुद्गल का बन्धनरूप परिणाम स्निग्धबन्धनपरिणाम हे और रूक्ष पुद्गल का बन्धनरूप परिणाम रूक्षबन्धनपरिणाम है ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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