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[प्रज्ञापनासूत्र
९४० [१] पुढविकाइया गतिपरिणामेणं तिरियगतिया,इंदियपरिणामेणं एगिंदिया, सेसं जहा णेरइयाणं (सु. ९३८)।णवरलेस्सापरिणामेणं तेउलेस्सा वि, जोगपरिणामेणं कायजोगी,णाणपरिणामो पत्थि, अण्णाणपरिणामेणं मतिअण्णाणी विसुयअण्णाणी वि, सणपरिणामेणं मिच्छट्ठिी । सेसंतं चेव ।
[९४०-१] पृथ्वीकायिकजीव गतिपरिणाम से तिर्यञ्चगतिक हैं, इन्द्रियपरिणाम से एकेन्द्रिय हैं, शेष (सब परिणामों की वक्तव्यता) नैरयिकों के समान (समझनी चाहिए।) विशेषतया यह है कि लेश्यापरिणाम से (ये) तेजोलेश्या वाले भी होते हैं । योगपरिणाम से (ये सिर्फ) काययोगी होते हैं, इनमें ज्ञानपरिणाम नही होता । अज्ञानपरिणाम से ये मति-अज्ञानी भी होते हैं, श्रुत-अज्ञानी भी ; (किन्तु विभंगज्ञानी नहीं होते ।) दर्शनपरिणाम से (ये केवल) मिथ्यादृष्टि होते हैं, (सम्यग्दृष्टि या सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते ।) शेष (सब वर्णन) उसी प्रकार (पूर्ववत् जानना चाहिए ।)
[२] एवं आउ-वणप्फइकाइया वि ।
[९४०-२] इसी प्रकार (की परिणामसम्बन्धी वक्तव्यता)अप्कायिक एवं वनस्पतिकायिकों की (समझनी चाहिए ।)
[३] तेऊ वाऊ एवं चेव । णवरं लेस्सापरिणामेणं जहा णेरइया (सु. ९३८) ।
[९४०-३] तेजस्कायिकों एवं वायुकायिकों की भी (परिणामसम्बन्धी वक्तव्यता) इसी प्रकार है। विशेष यह है कि लेश्यापरिणाम से लेश्यासम्बन्धी प्ररूपणा (सू. ९३८ में उल्लिखित) नैरयिकों के समान (तीन लेश्याएं समझनी चाहिए।)
९४१.[१] बेइंदिया गतिपरिणामेणं तिरियगतिया, इंदियपरिणामेणं बेइंदिया, सेसंजहाणेरइयाणं (सु. ९३८)।णवरं जोगपरिणामेणं वइयोगी विकाययोगी वि,णाणपरिणामेणं आभिणिबोहियणाणी वि सुयणाणी वि, अण्णाणपरिणामेणं मतिअण्णाणी वि सुयअण्णाणी वि, णो विभंगणाणी, दंसणपरिणामेणं सम्मद्दिट्ठी वि, मिच्छट्ठिी वि, णो सम्मामिच्छट्ठिी । सेसं तं चेव।
[९४१-१] द्वीन्द्रियजीव गतिपरिणाम से तिर्यञ्चगतिक हैं, इन्द्रियपरिणाम से (वे) द्वीन्द्रिय (दो इन्द्रियों वाले) होते हैं। शेष (सब परिणामों का निरूपण) (सू. ९३८ में उल्लिखित) नैरयिकों की तरह (समझना चाहिए।) विशेषता यह कि (वे) योगपरिणाम से वचनयोगी भी होते है, काययोगी भी; ज्ञानपरिणाम से आभिनिबोधिक ज्ञानी भी होते हैं और श्रुतज्ञानी भी; अज्ञानपरिणाम से मतिअज्ञानी भी होते हैं और श्रुतअज्ञानी भी; (किन्तु वे) विभंगज्ञानी नहीं होते। दर्शनपरिणाम से वे सम्यग्दृष्टि भी होते हैं और मिथ्यादृष्टि भी; (किन्तु) सम्यग्मिथ्यादृष्टि नहीं होते । शेष (सब वर्णन) उसी तरह (पूर्वोक्त नैरयिकवत् समझना चाहिए।)
[२] एवं जाव चउरिदिया।णवरं इंदियपरिवुड्डी कायव्वा ।