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________________ १३६ ] [प्रज्ञापनासूत्र चारित्रावरणकर्म के क्षय-क्षयोपशम से चारित्रपरिणाम उत्पन्न होता है । इसलिए दर्शनपरिणाम के अनन्तर चारित्रपरिणाम कहा गया है । चारित्रपरिणाम के प्रभाव से महासत्त्वपुरुष वेदपरिणाम का विनाश करते है, इसलिए चारित्रपरिणाम के अनन्तर वेदपरिणाम का प्रतिपादन किया गया है।' नैरयिकों में दशविध-परिणामों को प्ररूपणा ९३८. णेरइया गतिपरिणामेणं णिरयगतिया, इंदियपरिणामेणं पंचिंदिया, कसायपरिणामेणं कोहकसाई विजावलोभकसाई वि, लेस्सापरिणामेणं कण्हलेस्सा विणीललेस्सा वि काउलेस्सा वि, जोगपरिणामेणं मणजोगी वि वइजोगी वि कायजोगी वि, उवओगपरिणामेणं सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि, णाणपरिणामेणं आभिणिबोहियणाणी वि सुयणाणी वि ओहणाणी वि, अण्णाणपरिणामेणं मतिअण्णाणी वि,सयअण्णाणी विविभंगणाणी वि,दंसणपरिणामेणं सम्मद्रिी वि मिच्छद्दिट्ठी वि सम्मामिच्छद्दिट्ठी वि, चरित्तपरिणामेणं णो चरित्ती णो चरित्ताचरित्ती अचरित्ती, वेद परिणामेणं णो इत्थिवेयगा णो पुरिसवेयगा णपुंसगवेयगा । __ [९३८] नैरयिक जीव गतिपरिणाम की अपेक्षा नरकगतिक (नरकगति वाले) हैं; इन्द्रियपरिणाम से पंचेन्द्रिय हैं; कषायपरिणाम से क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी हैं; लेश्यापरिणाम से कृष्णलेश्यावान् भी हैं, नीललेश्यावान् भी और कापोतलेश्यावान् भी हैं; योगपरिणाम से वे मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी भी हैं, उपयोगपरिणाम से (वे) आभिनिबोधिक (मति) ज्ञानी भी हैं, श्रुतज्ञानी भी हैं और अवधिज्ञानी भी हैं, अज्ञानपरिणाम से (वे) मति-अज्ञानी भी हैं, श्रुत अज्ञानी भी और विभंगज्ञानी भी हैं; दर्शनपरिणाम से वे सम्यग्दृष्टि भी है, मिथ्यादृष्टि भी हैं और सम्यग्मिथ्यादृष्टि भी हैं; चारित्रपरिणाम से (वे) न तो चारित्री हैं, न चारित्राचारित्री हैं, किन्तु अचारित्री हैं; वेदपरिणाम से नारकजीव न स्त्रीवेदी हैं, न पुरुषवेदी, किन्तु नपुंसकवेदी हैं। विवेचन - नैरयिको में दशविधपरिणामों की प्ररूपणा - प्रस्तुत सूत्र (९३८) में जीवपरिणामों के दस प्रकारों में से कौन-कौन-सा परिणाम किस रूप में पाया जाता है, इसकी प्ररूपणा की गई है। नैरयिकों में तीन लेश्याएँ ही क्यों? - नारकों में प्रारम्भ की तीन लेश्याएँ होती हैं, शेष तीन लेश्याएँ नही होतीं । इनमें से भी रत्नप्रभा और शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में कापोतलेश्या, वालुकाप्रभा के नाराको में कापोत और नीललेश्या, पंकप्रभापृथ्वी के नारकों में नीललेश्या, धूमप्रभापृथ्वी के नारको मे नील और कृष्णालेश्या तथा तमःप्रभा और तमस्तम:प्रभापृथ्वी के नारको में सिर्फ कृष्णलेश्या ही होती है । इसलिए लेश्यापरिणाम की दृष्टि से समुच्चय नारकों को प्रारम्भ की तीन लेश्याओं वाला कहा है । नारको में चारित्रपरिणाम क्यों नहीं ? - चारित्रपरिणाम की दृष्टि से नारकजीव न तो चारित्री होते हैं १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २८५
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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