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________________ बारहवाँ शरीरपद ] [ १२३ (प्रत्युत्पन्न) छठे वर्ग-प्रमाण होते हैं; अथवा छियानवे (९६) छेदनकदायी राशि (जितनी संख्या है ।) उत्कृष्टपद में असंख्यात हैं । कालतः (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों - अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं । क्षेत्र से-एक रूप जिनमें प्रशिप्त किया गया है, ऐसे मनुष्यों से श्रेणी अपहृत होती है, उस श्रेणी की काल और क्षेत्र से अपहार को मार्गणा होती है-कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकालों से (असंख्यात मनुष्यों का) अपहार होता है । क्षेत्रत: - (वे) तीसरे वर्गमूल से गुणित अंगुल का प्रथमवर्गमूल (प्रमाण होते हैं ।) उनमें जो मुक्त औदारिकशरीर हैं, उनके विषय में (सू. ९१० - १ में उल्लिखित) औधिक मुक्त औदारिकशरीरों के समान जानना चाहिए । [ २ ] वेडव्वियाणं भंते ! पुच्छा ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा- बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं संखेज्जा, समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा संखेज्जणं कालेणं अवहीरंति णो चेव णं अवहिया सिया । तत्थ णं जे ते मुकेल्लगा ते णं जहा ओरालिया ओहिया (सु. ९१० [ १ ] ) । [९२१-२ प्र.] भगवन् ! मनुष्यों के वैक्रिय शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [९२१-२ उ.] गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे गए हैं - बद्ध और मुक्त । उनमें जो बद्ध हैं, वे संख्या हैँ । समय-समय में (वे) अपहृत होते-होते संख्यातकाल में अपहृत होते हैं; किन्तु अपहृत नहीं किए गए हैं। उनमें से जो मुक्त वैक्रियशरीर हैं, उनके विषय में (सू. ९१० - १ में उल्लिखित) औघिक औदारिकशरीरों के समान समझना चाहिए । [ ३ ] आहारगसरीरा जहा ओहिया (सु. ९१० [ ३ ])। [९२१-३] (इनके बद्ध-मुक्त) आहारकशरीरों की प्ररूपणा (सू. ९१० - ३ में उल्लिखित) औघिक आहारकशरीरों के समान समझनी चाहिए । [४] तेया- कम्मया जहा एतिसिं चेव ओरालिया । [९२१-४] (मनुष्यों के बद्ध - मुक्त) तैजस- कार्मणशरीरों का निरूपण इन्हीं के (बद्ध - मुक्त) औदारिकशरीरों के समान (समझना चाहिए ।) विवेचन - मनुष्यों के बद्ध-मुक्त औदारिकादि शरीरों का परिमाण प्रस्तुत सूत्र (९२१-१-४) में मनुष्यों के बद्ध और मुक्त औदारिकादि पांच शरीरों को प्ररूपणा की गई है। - मनुष्यों के बद्ध-मुक्त शरीरों की प्ररूपणा - मनुष्यों के बद्ध औदारिक शरीर - कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात हैं । इसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य दो प्रकार के होते हैं - गर्भज और
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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