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बारहवाँ शरीरपद ]
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(प्रत्युत्पन्न) छठे वर्ग-प्रमाण होते हैं; अथवा छियानवे (९६) छेदनकदायी राशि (जितनी संख्या है ।) उत्कृष्टपद में असंख्यात हैं । कालतः (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों - अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं । क्षेत्र से-एक रूप जिनमें प्रशिप्त किया गया है, ऐसे मनुष्यों से श्रेणी अपहृत होती है, उस श्रेणी की काल और क्षेत्र से अपहार को मार्गणा होती है-कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकालों से (असंख्यात मनुष्यों का) अपहार होता है । क्षेत्रत: - (वे) तीसरे वर्गमूल से गुणित अंगुल का प्रथमवर्गमूल (प्रमाण होते हैं ।) उनमें जो मुक्त औदारिकशरीर हैं, उनके विषय में (सू. ९१० - १ में उल्लिखित) औधिक मुक्त औदारिकशरीरों के समान जानना चाहिए ।
[ २ ] वेडव्वियाणं भंते ! पुच्छा ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा- बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं संखेज्जा, समए समए अवहीरमाणा अवहीरमाणा संखेज्जणं कालेणं अवहीरंति णो चेव णं अवहिया सिया । तत्थ णं जे ते मुकेल्लगा ते णं जहा ओरालिया ओहिया (सु. ९१० [ १ ] ) ।
[९२१-२ प्र.] भगवन् ! मनुष्यों के वैक्रिय शरीर कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[९२१-२ उ.] गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे गए हैं - बद्ध और मुक्त । उनमें जो बद्ध हैं, वे संख्या हैँ । समय-समय में (वे) अपहृत होते-होते संख्यातकाल में अपहृत होते हैं; किन्तु अपहृत नहीं किए गए हैं। उनमें से जो मुक्त वैक्रियशरीर हैं, उनके विषय में (सू. ९१० - १ में उल्लिखित) औघिक औदारिकशरीरों के समान समझना चाहिए ।
[ ३ ] आहारगसरीरा जहा ओहिया (सु. ९१० [ ३ ])।
[९२१-३] (इनके बद्ध-मुक्त) आहारकशरीरों की प्ररूपणा (सू. ९१० - ३ में उल्लिखित) औघिक आहारकशरीरों के समान समझनी चाहिए ।
[४] तेया- कम्मया जहा एतिसिं चेव ओरालिया ।
[९२१-४] (मनुष्यों के बद्ध - मुक्त) तैजस- कार्मणशरीरों का निरूपण इन्हीं के (बद्ध - मुक्त) औदारिकशरीरों के समान (समझना चाहिए ।)
विवेचन - मनुष्यों के बद्ध-मुक्त औदारिकादि शरीरों का परिमाण प्रस्तुत सूत्र (९२१-१-४) में मनुष्यों के बद्ध और मुक्त औदारिकादि पांच शरीरों को प्ररूपणा की गई है।
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मनुष्यों के बद्ध-मुक्त शरीरों की प्ररूपणा - मनुष्यों के बद्ध औदारिक शरीर - कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात हैं । इसका अभिप्राय यह है कि मनुष्य दो प्रकार के होते हैं - गर्भज और