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________________ ११८ ] [प्रज्ञापनासूत्र विवेचन - एकेन्द्रियों के बद्ध-मुक्त औदारिकादि शरीरों की प्ररूपणा - प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. ९१४ से ९१७ तक) में पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रिय जीवों के बद्ध और मुक्त औदारिकादि शरीरों की प्ररूपणा की गई है। पृथ्वीकायिकों आदि के बद्ध-मुक्त औदारिक शरीर - पृथ्वी-अप्-तेजस्कायिकों के बद्ध औदारिकशरीर असंख्यात हैं। काल से असंख्यात उत्सर्पिणियों - अवसर्पिणियों के समयों के बराबर हैं, और क्षेत्र से असंख्यात लोकप्रमाण हैं । इस सम्बन्ध में युक्ति पूर्ववत् समझ लेनी चाहिए। इनके मुक्त औदारिकशरीर औधिक मुक्त औदारिकशरीर के समान समझना चाहिए । पृथ्वीकायिकों आदि के वैक्रिय-आहारक-तैजस-कार्मणशरीरों की प्ररूपणा-इनमें वैक्रियलब्धि एवं आहारकलब्धि का अभाव होने से इनके बद्ध-वैक्रिय एवं आहारकशरीर नहीं होते । मुक्त आहारक एवं वैक्रिय शरीरों का कथन मुक्त औदारिकशरीरवत् समझना चाहिए । इनके तैजस और कार्मण शरीरों की प्ररूपणा इन्हीं के बद्ध-मुक्त औदारिकशरीरों के समान जाननी चाहिए । वायुकायिकों के बद्ध-मुक्त पांचों शरीरों की प्ररूपणा - वायुकायिकों के बद्ध-मुक्त औदारिक पृथ्वीकायिकों के बद्ध-मुक्त औदारिकशरीरों की तरह समझना चाहिए। वायुकाय में वैक्रिय शरीर पाया जाता है, अत: वायुकायिकों के बद्ध वैक्रियशरीर असंख्यात होते हैं। काल की अपेक्षा से यदि प्रतिसमय एक-एक वैक्रियशरीर का अपहरण किया जाये तो पल्योपम के असंख्यातवें भाग काल में उनका पूर्णतया अपहरण हो। तात्पर्य यह कि पल्योपम के असंख्यातवें भाग काल के जितने समय हैं, उतने ही वायुकायिकों के बद्ध वैक्रियशरीर होते हैं। वायुकायिक जीवों के सूक्ष्म और बादर ये दो-दो भेद हैं, फिर उनके प्रत्येक के पर्याप्त और अपर्याप्त ये दो-दो भेद हैं। इनमें से बादर-पर्याप्त-वायुकायिकों के अतिरिक्त शेष तीनों में प्रत्येक असंख्यात लोकाकाशप्रमाण हैं, बादर-पर्याप्त-वायुकायिक प्रतर के असंख्यात-भाग-प्रमाण हैं। इनमें से तीन प्रकार के वायुकायिकों के वैक्रियलब्धि नहीं होती, सिर्फ बादर वायुकायिकों में से भी संख्यातभागमात्र में ही वैक्रियलब्धि होती है। क्योंकि पृच्छा के समय पल्योपम के असंख्येयभागमात्र ही वैक्रियशरीर वाले पाए जाते हैं। अतः सिर्फ इनके ही वैक्रियशरीर होता है, अन्य तीनों के नहीं। वायुकायिकों के मुक्त वैक्रियशरीर के विषय में औधिक मुक्त वैक्रियशरीर की तरह ही कहना चाहिए। इनके बद्ध तैजस-कार्मण-शरीर के विषय में बद्ध औदारिकशरीर की तरह तथा मुक्त तैजस-कार्मणशरीर मुक्त औधिक तैजस-कार्मण-शरीर की तरह समझना चाहिए। वायुकायिकों में आहारकलब्धि का अभाव होने से केवल अनन्त मुक्त आहारकशरीर ही होते हैं, बद्ध नहीं। वनस्पतिकायिकों के बद्ध-मुक्त पांचों शरीरों की प्ररूपणा - वनस्पतिकायिकों के बद्ध-मुक्त औदारिकशरीरों का कथन पृथ्वीकायिकों के बद्ध-मुक्त औदारिकशरीर की तरह करना चाहिए। बद्ध-मुक्त तैजस-कार्मणशरीरों की प्ररूपणा औधिक तैजस-कार्मणशरीरों की तरह समझनी चाहिए। उनके वैक्रिय और
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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