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बारहवाँ शरीरपद ]
(समझनी चाहिए।)
९१६. [ १ ] वाउक्काइयाणं भंते ! केवतिया ओरालिया सरीरा पण्णत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । दुविहा वि जहा पुढविकाइयाणं ओरालिया (सु. ९१४ [१])।
[९१६-१ प्र.] भगवन् ! वायुकायिक जीवों के औदारिकशरीर कितने कहे गए है ?
[९१६-१ उ.] गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार - बद्ध और मुक्त। इन बद्ध और मुक्त दोनों प्रकार के औदारिकशरीरों की वक्तव्यता जैसे (सू. ९१४ - १ में) पृथ्वीकायिकों के (बद्ध-मुक्त) औदारिकशरीरों की (वक्तव्यता है), तदनुसार समझना चाहिए।
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[ २ ] वेडव्वियाणं पुच्छा ।
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, समए समए अवहीरमाण अवहीरमाणा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमेत्तेणं कालेणं अवहीरंति णो चेव णं अवहिया सिया | मुक्केल्लगा जहा पुढविक्वाइयाणं (सु. ९१४ [ २ ])।
[९१३-२ प्र.] भगवन् ! वायुकायिकों के वैक्रियशरीर कितने कहे गए हैं ?
[९१६-२ उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के हैं बद्ध और मुक्त | उनमें जो बद्ध है, वे असंख्यात हैं । (कालतः) यदि समय-समय में एक-एक शरीर का अपहरण किया जाए तो पल्योपम के असंख्यातवें भागप्रमाण काल में उनका पूर्णत: अपहरण होता है । किन्तु कभी अपहरण किया नहीं गया है (उनके) मुक्त शरीरों की प्ररूपणा (सू. ९१४ - २ में उल्लिखित) पृथ्वीकायिकों (के मुक्त वैक्रिय शरीरों) की तरह समझनी चाहिए।
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[ ३ ] आहराय-तेया-कम्मा जहा पुढविकाइयाणं (सु. ९१४ [ ३-४ ] ) । तहा भाणियव्वा ।
[९१६-३] (इनके बद्ध-मुक्त) आहारक, तैजस और कार्मण शरीरों (की प्ररूपणा) (सू. ९१४-३१४ में उल्लिखित) पृथ्वीकायिकों (के बद्ध-मुक्त आहारक, तैजस और कार्मण शरीरों) की तरह करनी चाहिए। ९१७. वणप्फइकाइयाणं जहा पुढविकाइयाणं । णवरं तेया- कम्मगा जहा ओहिया तेया- कम्मगा (सु. ९१० [ ४-५ ])।
[९१७] वनस्पतिकायिकों (के बद्ध-मुक्त औदारिकादि शरीरों) की प्ररूपणा पृथ्वीकायिकों (के बद्धमुक्त औदारिकादि शरीरों) की तरह समझना चाहिए । विशेष यह है कि इनके तैजस और कार्मण शरीरों का निरूपण (सू. ९१०-४५ के अनुसार) औधिक तैजस- कार्मण- शरीरों के समान करना चाहिए ।