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________________ ११६ ] [प्रज्ञापनासूत्र एकेन्द्रियों के बद्ध-मुक्त शरीरों की प्ररूपणा ९१४.[१] पुढविकाइयाणं भंते ! केवतिया ओरालियसरीरगा पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं असंखेज्जा, असंखेजार्हि उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीहि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा ते णं अणंता, अणंतार्हि उस्सप्पिणि-ओसप्पिणीर्हि अवहीरंति कालओ, खेत्तओ अणंता लोगा, अभवसिद्धिएर्हितो अणंतगुणा, सिद्धाणं अणंतभागो।। [९१४-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के कितने औदारिकशरीर कहे गए हैं ? [९१४-१ उ.] गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे गये हैं-बद्ध और मुक्त। उनमे जो बद्ध हैं, वे असंख्यात हैं। काल की अपेक्षा से - (वे) असंख्यात उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा से वे असंख्यात लोक-प्रमाण हैं। उनमें से जो मुक्त हैं, वे अनन्त हैं। कालतः (वे) अनन्त उत्सर्पिणियों और अवसर्पिणियों से अपहृत होते हैं। क्षेत्रतः (वे) अनन्तलोक-प्रमाण हैं। (द्रव्यतः वे) अभव्यों से अनन्तगुणे हैं, सिद्धों के अनन्तवें भाग हैं। [२] पुढविकाइयाणं भंते ! केवतिया वेउव्वियसरीरगा पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - बद्धेल्लगा य मुक्केल्लगा य । तत्थ णं जे ते बद्धेल्लगा ते णं णत्थि। तत्थ णं जे ते मुक्केल्लगा ते णं जहा एतेसिं चेव ओरालिया भणिया तहेव भाणियव्वा। . [९१४-२ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के वैक्रियशरीर कितने कहे गए हैं ? । [९१४-२ उ.] गौतम ! (वे) दो प्रकार के कहे गए हैं - बद्ध और मुक्त। उनमें जो बद्ध हैं, वे इनके नहीं होते। उनमें जो मुक्त है, उनके विषय में, जैसे इन्हीं के औदारिकशरीरों के विषय में कहा गया है, वैसे ही कहना चाहिए। [३] एवं आहारगसरीरा वि । [९१४-३] इनके आहारकशरीरों की वक्तव्यता इन्हीं के वैक्रियशरीरों के समान समझनी चाहिए । [४] तेया-कम्मगा जहा एतेसिं चेव ओरालिया। [९१४-४] (इनके बद्ध-मुक्त) तैजस-कार्मणशरीरों (की प्ररूपणा) इन्हीं के बद्ध-मुक्त औदारिकशरीरों के समान समझनी चाहिए। ९१५. एवं आउक्काइया तेउक्काइया वि । [९१५] इसी प्रकार अप्कायिकों और तेजस्कायिकों (के बद्ध-मुक्त सभी शरीरों) की वक्तव्यता
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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