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[प्रज्ञापनासूत्र
गोयमा ! इच्चेयाइं चत्तारि भासज्जायाइं आउत्तं भासमाणे आराहए, णो विराहए । तेण परं अस्संजयाऽविरयाऽपडिहयाऽपच्चक्खायपावकम्मे सच्चं वा भासं भासंतो मोसं वा सच्चामोसं वा असच्चामोसं वा भासं भासमाणे णो आराहए, विराहए ।
_ [८९९ प्र.] भगवन् ! इन चारों भाषा-प्रकारों को बोलता हुआ (जीव) आराधक होता है, अथवा विराधक?
[८९९ उ.] गौतम ! इन चारों प्रकार की भाषाओं को उपयोगपूर्वक (आयुक्त होकर) बोलने वाला आराधक होता है, विराधक नहीं। उससे पर - (अर्थात् उपयोगपूर्वक बोलने वाले से भिन्न) जो असंयत, अविरत.पापकर्म का प्रतिघात और प्रत्याख्यान न करने वाला सत्यभाषा बोलता हआ तथा मषा
आ तथा मृषाभाषा, सत्यामुषा और असत्यामृषा भाषा बोलता हुआ (व्यक्ति) आराधक नहीं है, विराधक है।
९००. एतेसि णं ते ! जीवाणं सच्चभासगाणं मोसभासगाणं सच्चामोसभासगाणं असच्चामोसभासगाणं अभासगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४ ? '
गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सच्चभासगा, सच्चामोसभासगा असंखेजगुणा, मोसभासगा असंखेजगुणा, असच्चामोसभासगा असंखेजगुणा, अभासगा अणंतगुणा ।
॥पण्णवणाए भगवईए एक्कारसमं भासापयं समत्तं॥
[९०० प्र.] भगवन् ! इन सत्यभाषक, मृषाभाषक, सत्यामृषाभाषक और असत्यामृषाभाषक तथा अभाषक जीवों में से कौन, किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
[९०० उ.] गौतम ! सबसे थोड़े जीव सत्यभाषक हैं, उनसे असंख्यातगुणे सत्यामृषाभाषक हैं, उनकी अपेक्षा मृषाभाषक असंख्यातगुणे हैं, उनसे असंख्यातगुणे असत्यामृषाभाषक जीव हैं और उनकी अपेक्षा अभाषक जीव अनन्तगुणे हैं ।
विवेचन - सोलह वचनों और चार भाषाजातों के आराधक-विराधक एवं अल्पबहुत्व की प्ररूपणा - प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. ८९६ से ९०० तक) में सोलह प्रकार के वचनों तथा सत्यादि चार प्रकार की भाषाओं का उल्लेख करके उनकी प्रज्ञापनिता (सत्यता) और उनके भाषकों की आराधकता-विराधकता की प्ररूपणा की गई है। अन्त में उक्त चारों प्रकार की भाषाओं के भाषकों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है।
सोलह प्रकार के वचनों की व्याख्या - १. एकवचन - एकत्वप्रतिपादक भाषा, जैसे पुरुषः अर्थात्- एक पुरुष। २. द्विवचन - द्वित्वप्रतिपादक भाषा, जैसे-पुरुषौ, अर्थात्-दो पुरूष । ३. बहुवचन - बहुत्वप्रतिपादक कथन, जैसे - पुरुषाः अर्थात्-बहुत-से-पुरुष । ४. स्त्रीवचन - स्त्रीलिंगवाचक शब्द, जैसे