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________________ ग्यारहवाँ भाषापद] [९७ सोलह वचनों तथा चार भाषाजातों के आराधक-विराधक एवं अल्पबहुत्व की प्ररूपणा .८९६. कतिविहे णं भंते ! वयणे पण्णत्ते ? - गोयमा ! सोलसविहे वयणे पण्णत्ते। तं जहा - एगवयणे १ दुवयणे २ बहुवयणे ३ इत्थिवयणे ४ पुंसवयणे ५ णपुंसगवयणे ६ अज्झत्थवयणे ७ उवणीयवयणे ८ अवणीयवयणे : उवणीयावणीयवयणे १० अवणीयउवणीयवयणे ११ तीतवयणे १२ पडुप्पन्नवयणे १३ अणागयवयणे १४ पच्चक्खवयणे १५ परोक्खवयणे १६ । [८९६ प्र.] भगवन् ! वचन कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [८९६ उ.] गौतम ! वचन सोलह प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं - १. एकवचन, २. द्विवचन, ३. बहुवचन, ४. स्त्रीवचन,५. पुरुषवचन, ६. नपुंसकवचन, ७. अध्यात्मवचन, ८. उपनीतवचन,९. अपनीतवचन, १०. उपनीतापनीतवचन, ११. अपनीतोपनीतवचन, १२. अतीतवचन, १३. प्रत्युत्पन्न (वर्तमान), वचन, १४. अनागतवचन (भविष्यत्वचन) १५. प्रत्यक्षवचन और १६. परोक्षवचन । ८९७. इच्चेयं भंते ! एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा? हंता गोयमा ! इच्चेयं एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा । [८९७ प्र.] इस प्रकार एकवचन (से लेकर) परोक्षवचन (तक १६ प्रकार के वचन) को बोलते हुये (जीव) की क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा तो नहीं है ? [८९७ उ.] हाँ, गौतम ! इस प्रकार एकवचन से लेकर परोक्षवचन तक (१६ वचनों) को बोलते हुए (जीव की) भाषा प्रज्ञापनी है, यह भाषा मृषा नहीं है। ८९८. कति णं भंते ! भासजाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि भासज्जाया पणत्ता। तं जहा-सच्चमेगं भासज्जायं? बितियं मोसं भासजायं २ ततियं सच्चामोसं भासजायं ३ चउत्थं असच्चामोसं भासज्जायं ४ । [८९८ प्र.] भगवन् ! भाषाजात (भाषा के प्रकार) कितने हैं ? [८९८ उ.] गौतम ! भाषाजात चार कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - (१) भाषा का एक जात (प्रकार) सत्या है, (२) भाषा का दूसरा प्रकार मृषा है, (३) भाषा का तीसरा प्रकार सत्यामृषा है और (४) भाषा का चौथा प्रकार असत्यामृषा है । ८९९. इच्चेयाइं भंते ! चत्तारि भासज्जायाइं भासमाणे किं आराहए विराहए?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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