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ग्यारहवाँ भाषापद]
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सोलह वचनों तथा चार भाषाजातों के आराधक-विराधक एवं अल्पबहुत्व की प्ररूपणा .८९६. कतिविहे णं भंते ! वयणे पण्णत्ते ? - गोयमा ! सोलसविहे वयणे पण्णत्ते। तं जहा - एगवयणे १ दुवयणे २ बहुवयणे ३ इत्थिवयणे ४ पुंसवयणे ५ णपुंसगवयणे ६ अज्झत्थवयणे ७ उवणीयवयणे ८ अवणीयवयणे : उवणीयावणीयवयणे १० अवणीयउवणीयवयणे ११ तीतवयणे १२ पडुप्पन्नवयणे १३ अणागयवयणे १४ पच्चक्खवयणे १५ परोक्खवयणे १६ ।
[८९६ प्र.] भगवन् ! वचन कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[८९६ उ.] गौतम ! वचन सोलह प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं - १. एकवचन, २. द्विवचन, ३. बहुवचन, ४. स्त्रीवचन,५. पुरुषवचन, ६. नपुंसकवचन, ७. अध्यात्मवचन, ८. उपनीतवचन,९. अपनीतवचन, १०. उपनीतापनीतवचन, ११. अपनीतोपनीतवचन, १२. अतीतवचन, १३. प्रत्युत्पन्न (वर्तमान), वचन, १४. अनागतवचन (भविष्यत्वचन) १५. प्रत्यक्षवचन और १६. परोक्षवचन ।
८९७. इच्चेयं भंते ! एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा?
हंता गोयमा ! इच्चेयं एगवयणं वा जाव परोक्खवयणं वा वयमाणे पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा ।
[८९७ प्र.] इस प्रकार एकवचन (से लेकर) परोक्षवचन (तक १६ प्रकार के वचन) को बोलते हुये (जीव) की क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा तो नहीं है ?
[८९७ उ.] हाँ, गौतम ! इस प्रकार एकवचन से लेकर परोक्षवचन तक (१६ वचनों) को बोलते हुए (जीव की) भाषा प्रज्ञापनी है, यह भाषा मृषा नहीं है।
८९८. कति णं भंते ! भासजाया पण्णत्ता ?
गोयमा ! चत्तारि भासज्जाया पणत्ता। तं जहा-सच्चमेगं भासज्जायं? बितियं मोसं भासजायं २ ततियं सच्चामोसं भासजायं ३ चउत्थं असच्चामोसं भासज्जायं ४ ।
[८९८ प्र.] भगवन् ! भाषाजात (भाषा के प्रकार) कितने हैं ?
[८९८ उ.] गौतम ! भाषाजात चार कहे गये हैं, वे इस प्रकार हैं - (१) भाषा का एक जात (प्रकार) सत्या है, (२) भाषा का दूसरा प्रकार मृषा है, (३) भाषा का तीसरा प्रकार सत्यामृषा है और (४) भाषा का चौथा प्रकार असत्यामृषा है ।
८९९. इच्चेयाइं भंते ! चत्तारि भासज्जायाइं भासमाणे किं आराहए विराहए?