________________
८०]
[जीवाजीवाभिगमसूत्र
और समुद्र हैं।
भंते ! उद्धारसमयों की अपेक्षा से द्वीप-समुद्र कितने हैं ? गौतम ! अढाई सागरोपम के जितने उद्धारसमय हैं, उतने द्वीप और सागर हैं।
भगवन् ! द्वीप-समुद्र पृथ्वी के परिणाम हैं , अप् के परिणाम है, जीव के परिणाम हैं तथा पुद्गल के परिणाम हैं?
गोतम ! द्वीप-समुद्र पृथ्वी परिणाम भी हैं, जलपरिणाम भी हैं, जीवपरिणाम भी हैं और पुद्गलपरिणाम भी हैं।
भगवन् ! इन द्वीप-समुद्रों में सब प्राणी, सब भूत, सब जीव और सब सत्व पृथ्वीकाय यावत् त्रसकाय के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं क्या ?
गौतम ! हां, कईबार अथवा अनन्तबार उत्पन्न हो चुके हैं।
इस तहर द्वीप-समुद्र की वक्तव्यता पूर्ण हुई। इन्द्रिय पुद्गल परिणाम
१८९. कइविहे णं भंते ! इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते ?
गोयमा !पंचविहे इंदियविसए पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा-सोइंदियविसए जाव फासिंदियविसए।
सोइंदियविसए णं भंते ! पोग्गलपरिणामे कइविहे पण्णत्ते ? .. गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुब्भिसद्दपरिणामे य दुब्भिसद्दपरिणामे य।
एवं चक्खिदियविसयादिएहि वि सुरूवपरिणामे य दुरूवपरिणामे य। एवं सुरभिगंधपरिणामे य दुरभिगंधपरिणामे य। एवं सुरसपरिणामे य दुरसपरिणामे य। एवं सुफासपरिणामे य दुफासपरिणामे य।
से नूणं भंते ! उच्चावएसु सद्दपरिणामेसु उच्चावएसु रूवपरिणामेसु एवं गंधपरिणामेसु रसपरिणामेसु फासपरिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंतीति वत्तव्वं सिया ? हंता गोयमा ! उच्चावएसु सद्दपरिणामेसु परिणममाणा पोग्गला परिणमंतीति वत्तव्वं सिया।।
से नूणं भंते ! सुब्भिसद्दा पोग्गला दुब्भिसहत्ताए परिणमंति, दुब्भिसद्दा पोग्गला सुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति ? हंता गोयमा ! सुन्भिसद्दा पोग्गला दुन्भिसद्दत्ताए परिणमंति, दुब्भिसद्दा पोग्गला सुब्भिसद्दत्ताए परिणमंति ? __ से नूणं भंते! सुरूवा पोग्गला दुरूवत्ताए परिणमंति, दुरूवा पोग्गला सुरूवत्ताए परिणमंति? हंता गोयमा ! एवं सुब्भिगंधा पोग्गला दुब्भिगंधत्ताए परिणमंति, दुब्भिगंधा