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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : देवशक्ति सम्बन्धी प्रश्नोत्तर] [८१ पोग्गला सुब्भिगंधत्ताए परिणमंति? हंता गोयमा! एवं सुफासा दुफासत्ताए०? सुरसा दुरसत्ताए०? हंता गोयमा ! १८९. भगवन् ! इन्द्रियों का विषयभूत पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है? गौतम ! इन्द्रियों का विषयभूत पुद्गलपरिणाम पांच प्रकार का है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय का विषय यावत् स्पर्शनेन्द्रिय का विषय । भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय का विषयभूत पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है? गौतम ! दो प्रकार का है-शुभ शब्दपरिणाम और अशुभ शब्दपरिणाम। इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय आदि के विषयभूत पुद्गलपरिणाम भी दो-दो प्रकार के हैं -यथा सुरूपपरिणाम और कुरूपपरिणाम, सुरभिगंधपरिणाम और दुरभिगंधपरिणाम, सुरसपरिणाम एवं दुरसपरिणाम और सुस्पर्शपरिणाम एवं दु:स्पर्शपरिणाम। भगवन् ! उत्तम अधम शब्दपरिणामों में, उत्तम-अधम रूपपरिणामों में, इसी तरह गंधपरिणामों में, रसपरिणामों में और स्पर्शपरिणामों में परिणत होते हुए पुद्गल परिणत होते हैं -बदलते हैं -ऐसा कहा जा सकता है क्या? (अवस्था के बदलने से वस्तु का बदलना कहा जा सकता है क्या?) ___ हां, गौतम ! उत्तम-अधम रूप में बदलने वाले शब्दादि परिणामों के कारण पुद्गलों का बदलना कहा जा सकता है। (पर्यायों के बदलने पर द्रव्य का बदलना कहा जा सकता है।) भगवन् ! क्या उत्तम शब्द अधम शब्द के रूप में बदलते हैं ? अधम शब्द उत्तम शब्द के रूप में बदलते हैं क्या? . गौतम ! उत्तम शब्द अधम शब्द के रूप में और अधम शब्द उत्तम शब्द के रूप में बदलते हैं। भगवन् ! क्या शुभ रूप वाले पुद्गल अशुभ रूप में और अशुभ रूप के पुद्गल शुभ रूप में बदलते हैं? हां, गौतम ! बदलते हैं। इसी प्रकार सुरभिगंध के पुद्गल दुरभिगंध के रूप में और दुरभिगंध के पुद्गल सुरभिगंध के रूप में बदलते हैं। इसी प्रकार शुभस्पर्श के पुदगल अशुभस्पर्श के रूप में और अशुभस्पर्श वाले शुभस्पर्श के रूप में तथा इसी तरह शुभरस के पुद्गल अशुभरस के रूप में और अशुभरस के पुद्गल शुभरस में परिणत हो सकते है। . देवशक्ति सम्बन्धी प्रश्नोत्तर १९०. देवे णं भंते ! महिड्डिए जाव महाणुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खवित्ता पभू तमेव अणुपरिवट्टित्ताणं गिण्हित्तए ? हंता प्रभू ! से केणठेणं एवं वुच्चइ देवे णं भंते ! महिड्डिए जाव गिण्हित्तए ? ___ गोयमा ! पोग्गले खित्तेसमाणे पुलवामेव सिग्घगई भवित्ता तओ पच्छा मंदगई भवइ, देवे णं महिड्डिए जाव महाणुभागे पुव्वंपि पच्छावि सिग्धे सिग्धगई (तुरिए तुरियगई) चेव,
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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