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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : समुद्रों के उदकों का आस्वाद ] [७९ १८७. भगवन् ! कितने समुद्र बहुत मत्स्य-कच्छपों वाले हैं ? गौतम ! तीन समुद्र बहुत मत्स्य-कच्छपों वाले हैं, उनके नाम हैं -लवण, कालोद और स्वयंभूरमण समुद्र । आयुष्मन श्रमण ! शेष सब समुद्र अल्प मत्स्य-कच्छपों वालें कहे गये हैं । भगवन् ! कालोदसमुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जातिप्रधान कुलकोडियों की योनियां कही गई हैं ? गौतम ! नव लाख मत्स्य-जातिकुलकोडी योनियां कही हैं। भगवन् ! स्वयंभूरमणसमुद्र में मत्स्यों की कितनी लाख जातिप्रधान कुलकोडियों की योनियां हैं? गौतम ! साढे बारह लाख मत्स्य-जातिकुलकोडी योनियां हैं। भगवन् ! लवणसमुद्र में मत्स्यों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी हैं ? गौतम ! जघन्य से अंगुल का असंख्यात भाग और उत्कृष्ट पांच सौ योजन की उनकी अवगाहना इसी तरह कालोदसमुद्र में (जघन्य अंगुल का असंख्यात भाग) उत्कृष्ट सात सौ योजन की अवगाहना है। स्वयंभूरमणसमुद्र में मत्स्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक हजार योजन प्रमाण हैं। १८८. केवइया णं भंते ! दीवसमुद्दा नामधेजेहिं पण्णत्ता ? गोयमा ! जावइया लोगे सुभा णामा सुभा वण्णा जाव सुभा फासा, एवइया दीवसमुद्दा णामधेज्जेहिं पण्णत्ता। केवइया णं भंते ! दीवसमुद्दा उद्धारसमएणं पण्णत्ता ? गोयमा ! जावइया अड्डाइजाणं सागरोवमाणं उद्धारसमया एवइया दीवसमुद्दा उद्घारसमएणं पण्णत्ता। दीवसमुद्दा णं भंते ! किं पुढविपरिणामा आउपरिणामा जोवपरिणामा पोग्गलपरिणामा? गोयमा ! पुढवीपरिणामावि, आउपरिणामावि, जीवपरिणामावि, पोग्गलपरिणामावि। दीवसमुद्देसु णं भंते ! सव्वपाणा, सव्वभूया, सव्वजीवा सव्वसत्ता पुढविकाइयत्ताए जाव तसकाइयत्ताए उववण्णपुव्वा ? हंता गोयमा ! असइ अदुवा अणंतखुत्तो । इति दीवसमुद्दा समत्ता। १८८. भंते ! नामों की अपेक्षा द्वीप और समुद्र कितने नाम वाले हैं ? गौतम ! लोक में जितने शुभ नाम हैं , शुभ वर्ण हैं यावत् शुभ स्पर्श हैं , उतने ही नामों वाले द्वीप
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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