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[ जीवाजीवाभिगमसूत्र
भगवन्! क्षोदोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ?
गौतम ! जैसे भेरुण्ड देश में उत्पन्न जातिवंत उन्नत पौण्ड्रक जाति का ईख होता है जो पकने पर हरिताल के समान पीला हो जाता है, जिसके पर्व काले हैं, ऊपर और नीचे के भाग को छोड़कर केवल बिचले त्रिभाग को ही बलिष्ठ बैलों द्वारा चलाये गये यंत्र से रस निकाला गया हो, जो वस्त्र से छाना गया हो, जिसमें चतुर्जातक - दालचीनी, इलायची, केसर, कालीमिर्च मिलाये जाने से सुगन्धित हो, जो बहुत पथ्य, पाचक और शुभ वर्णादि से युक्त हो-ऐसे इक्षुरस जैसा वह जल है । यह उपमा मात्र है, इससे भी अधिक इष्टतर क्षोदोदसमुद्र का जल है ।
इसी प्रकार स्वयंभूरमणसमुद्र पर्यन्त शेष समुद्रों के जल का आस्वाद जानना चाहिए। विशेषता यह है कि वह जल वैसा ही स्वच्छ, जातिवंत और पथ्य है जैसा कि पुष्करोद का जल 1
भगवन् ! कितने समुद्र प्रत्येक रस वाले कहे गये । ?
गौतम ! चार समुद्र प्रत्येक रसवाले हैं अर्थात् वैसा रस अन्य किसी दूसरे समुद्र का नहीं है । वे - लवण, वरूणोद, क्षोरोद और घृतोद ।
भगवन् ! कितने समुद्र प्रकृति से उदगरस वाले हैं ?
गौतम ! तीन समुद्र प्रकृति से उदग रसवाले हैं अर्थात इनका जल स्वाभाविक पानी जैसा ही है । वे है - कालोद, पुष्करोद और स्वयंभूरमण समुद्र ।
आयुष्मन् श्रमण ! शेष सब समुद्र प्रायः क्षोदरस ( इक्षुरस) वाले कहे गये हैं ।
१८७. कइ णं भंते ! समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता ?
गोयमा ! तओ समुद्दा बहुमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता, तं जहा - लवणे, कालोए, सयंभूरमणे । अवसेसा समुद्दा अप्पमच्छकच्छभाइण्णा पण्णत्ता समण्णाउसो !
लवणे णं भंते ! समुद्दे कइमच्छजाइकुलजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ? गोमा ! सत्त मच्छजाइकुलकोडीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ।
कालो णं भंते! समुद्दे कइ मच्छजाइ पण्णत्ता ?
गोयमा ! नवमच्छकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता । सयंभूरमणे णं भंते ! समुद्दे कइमच्छजइ० ?
गोयमा ! अद्धतेरसमच्छजाइकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पण्णत्ता ।
लवणे णं भंते ! समुद्दे मच्छाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं उक्कोसेणं पंचजोयणसयाई । एवं कालोए सत्तजोयणसयाइं । सयंभूरमणे जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जभागं उक्को सेणं दस जोयसयाई ।