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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : अरूणद्वीप का कथन ] [ ७३ दीवेसु भद्दनामा वरनामा होंति उदहीसु । जाव पच्छिमभावं च खोयवरादीसु सयंभूरमणपज्जन्तेसु ॥ वावीओ खोदोदग पडिहत्थाओ पव्वया य सव्ववइरामया ॥ १८५. (इ) कुण्डलवराभाससमुद्र को चारों ओर से घेरकर रूचक नामक द्वीप अवस्थित है, जो गोल और वलयाकार है । भगवन् ! वह रूचकद्वीप समचक्रवालविष्कंभ वाला है या विषमचक्रवालविष्कंभ वाला है। गौतम ! समचक्रवालविष्कंभ वाला है, विषमचक्रवालविष्कंभ वाला नहीं है। भगवन् ! उसका चक्रवालविष्कंभ कितना है ? यहां से लगाकर सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये यावत् वहां सर्वार्थ और मनोरम नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष कथन पूर्ववत् । रूचकोदक नामक समुद्र क्षोदोद समुद्र की तरह संख्यात लाख योजन चक्रवालविष्कंभ वाला, संख्यात लाख योजन परिधि वाला और द्वार द्वारान्तर भी संख्यात लाख योजन वाले हैं। वहां ज्योतिष्कों की संख्या भी संख्यात कहनी चाहिए। क्षोदोदसमुद्र की तरह अर्थ आदि की वक्तव्यता कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि यहां सुमन और सौमनस नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष पूर्ववत् जानना चाहिए । रूचकद्वीप समुद्र से आगे के सब द्वीप समुद्रों का विष्कंभ, परिधि, द्वार, द्वारान्तर, ज्योतिष्कों का प्रमाण - ये सब असंख्यात कहने चाहिए । रूचकोदसमुद्र को सब ओर से घेरकर रूचकवर नाम का द्वीप अवस्थित है, जो गोल है आदि कथन करना चाहिए यावत् रूचकवरभद्र और रूचकवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । रूचकवरोदसमुद्र में रूचकवर और रूचकवरमहावर नाम के दो देव रहते हैं, जो महर्द्धिक हैं । - रूचकवरावभासद्वीप में रूचकवरावभासभद्र और रूचकवरावभासमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । रूचकवरावभाससमुद्र में रूचकवरावभासवर ओर रूचकवरावभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं । 1 हार द्वीप में हारभद्र और हारमहाभद्र नाम के दो देव हैं। हारसमुद्र में हारवर और हारवरमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरद्वीप में हारवरभद्र और हारवरमहाभद्र नाम के दो महर्द्धिक देव हैं हारवरोदसमुद्र में हारवर और हारवरमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव हैं। हारवरावभासद्वीप में हारवरावभासभद्र और हरवरावभासमहाभद्र नाम दो महर्द्धिक देव हैं । हारवरावभासोदसमुद्र में हारवरावभासवर और हारवरावभासमहावर नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं । इस तरह आगे सर्वत्र त्रिप्रत्यवतार और देवों के नाम उद्भावित कर लेने चाहिए। द्वीपों के नामों के साथ भद्र और महाभद्र शब्द लगाने से एवं समुद्रों के नामों के साथ "वर" शब्द लगाने से उन द्वीपों और समुद्रों के देवों के नाम बन जाते हैं यावत् १. सूर्यद्वीप, २. सूर्यसमुद्र, ३. सूर्यवरद्वीप, ४ . सूर्यवरसमुद्र, ५. सूर्यवराभासद्वीप और ६. सूर्यवरावभाससमुद्र में क्रमशः १. सूर्यभद्र और सूर्यमहाभद्र
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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