SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७०] [जीवाजीवाभिगमसूत्र दीक्षा, ज्ञानोत्पत्ति और निर्वाण कल्याणकों के अवसर पर देवकार्यों में, देव-मेलों में, देवगोष्ठियों में, देवसम्मेलनों में और देवों के जीतव्यवहार सम्बन्धी प्रयोजनों के लिए एकत्रित होते हैं, सम्मिलित होते हैं और आनन्द-विभोर होकर महामहिमाशाली अष्टाह्निका पर्व मनाते हुए सुखपूर्वक विचरते हैं। कैलाश और हरिवाहन नाम के दो महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाले देव वहां रहते हैं। इस कारण हे गौतम ! इस द्वीप का नाम नंदीश्वरद्वीप है। अथवा द्रव्यापेक्षया शाश्वत होने से यह नाम शाश्वत और नित्य है। सदा से चला आ रहा है। यहां सब चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा संख्यातसंख्यात हैं। १८४. नंदीस्सरवरं णं दीवं नंदीसरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव सव्वं तहेव अट्ठो जो खोदोदगस्स जाव सुमणसोमणसभद्दा एत्थ दो देवा महिड्डिया जाव परिवसंति, सेसं तहेव जाव तारग्गं। १८४. उक्त नंदीश्वरद्वीप को चारों ओर से घेरे हुए नंदीश्वर नामक समुद्र हैं, जो गोल है एवं वलयाकार संस्थित है इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् (क्षोदोकवत्) कहना चाहिए। विशेषता यह है कि यहां सुमनस और सौमनसभद्र नामक दो महर्द्धिक देव रहते हैं। शेष सब वर्णन तारागण की संख्या पर्यन्त पूर्ववत् कहना चाहिए। अरूणद्वीप का कथन १८५.(अ) नंदीसरोदं समुदं अरूणे णामं दीवे वट्टे वलयागार जाव संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ। अरूणे णं भंते ! दीवे किं समचक्कवालसंठिए विसमचक्कवालसंठिए ? गोयमा ! . समचक्कवालसंठिए नो विसमचक्कवालसंठिए। केवइयं समचक्कवालविक्खंभेणं संठिए ? संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई परिवेणं पण्णत्ते। पउमवरवेदीया-वणसंड-दारा-दारंतरा तहे व संखेज्जाई जोयणसयसहस्साई दारंतरं जाव अट्ठो वावीओ खोदोदगे पडिहत्थाओ उप्पायपव्वयगा सव्ववइरामया अच्छा; असोग-वीतसोगा य एत्थ दुवे देवा महिड्डिया जाव परिवसंति। से तेणढेणं० जाव संखेज सव्वं । १८५. (अ) नंदीश्वर नामक समुद्र को चारों ओर से घेरे हुए अरूण नाम का द्वीप है जो गोल है और वलयाकार रूप से संस्थित हैं। हे भगवन् ! अरूणद्वीप समचक्रवालविष्कंभ वाला है या विषमचक्रवालविष्कंभ वाला है ? गौतम ! वह समचक्रवालविष्कंभ वाला है, विषमचक्रवालविष्कंभ वाला नहीं है। भगवन् ! उसका चक्रवालविष्कंभ कितना है ? गौतम ! संख्यात लाख योजन उसका चक्रवालविष्कंभ है और संख्यात लाख योजन उसकी परिधि है। पद्मवरवेदिका, वनखण्ड, द्वार, द्वारान्तर भी संख्यात लाख योजन प्रमाण है । इसी द्वीप का
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy