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________________ ६४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र -विरहियाणं उवद्दवविवज्जियाणं सीयपरिफासियाणं अभिणवतवग्गाणं अपालिताणं तिभायणिच्छोडियवाडगाणं अवणीतमूलाणं गंठिपरिसोहियाणं कुसलणरकप्पियाणं उव्वणं जाव पोंडियाणं बलवगणरजत्तजन्तपरिगालितमेत्ताणं खोयरसे होजा वत्थपरिपूए चाउज्जातगसुवासिए अहियपत्थलहुए वण्णोववेए तहेव', भवे एयारूवे सिया ? णो तिणढे समढे । खोयोदस्स णं समुद्दस्स उदए एत्तो इट्टतरए चेव जाव आसाएणं पण्णत्ते। पुण्णभद्दमाणिभद्दा य (पुण्णपुण्णभद्दा य) इत्थ दुवे देवा जाव परिवसंति, सेसं तहेव। जोइसं संखेजं चंदा०। १८२. (आ) गोल और वलयाकार क्षोदवर नाम का द्वीप घृतोदसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए स्थित है, आदि वर्णन अर्थपर्यन्त पूर्ववत् कहना चाहिए। क्षोदवरद्वीप में जगह-जगह छोटी-छोटी बावडियां आदि हैं जो क्षोदोदग (इक्षुरस) से परिपूर्ण हैं । वहां उत्पात पर्वत आदि हैं जो सर्ववैडूर्यरत्नमय यावत् प्रतिरूप हैं। वहां सुप्रभ और महाप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव रहते हैं। इस कारण यह क्षोदवरद्वीप कहा जाता है । यहां संख्यात-संख्यात चन्द्र, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारागण कोटिकोटि हैं। इस क्षोदवरद्वीप को क्षोदोद नाम का समुद्र सब ओर से घेरे हुए है। यह गोल और वलयाकार है यावत् संख्यात लाख योजन का विष्कंभ और परिधि वाला है आदि सब कथन अर्थ सम्बन्धी प्रश्न तक पूर्ववत् जानना चाहिए। अर्थ इस प्रकार है-हे गौतम ! क्षोदोदसमुद्र का पानी जातिवंत श्रेष्ट इक्षुरस से भी अधिक इष्ट यावत् मन को तृप्ति देने वाला है। वह इक्षुरस स्वादिष्ट, गाढ़, प्रशस्त, विश्रान्त, स्निग्ध और सुकुमार भूमि भाग में निपुण कृषि कार द्वारा काष्ट के सुन्दर विशिष्ट हल से जोती गई भूमि में जिस इक्षु का आरोपण किया गया है और निपुण पुरूष के द्वारा जिसका संरक्षण किया गया हो, तृणरहित भूमि में जिसकी वृद्धि हुई हो और इससे जो निर्मल एवं पककर विशेष रूप से मोटी हो गई हो और मधुररस जो युक्त बन गई हो, शीतकाल के जन्तुओ के उपद्रव से रहित हो, ऊपर और नीचे की जड़ का भाग निकाल कर और उसकी गाठों को भी अलग कर बलवंत बैलों द्वारा यंत्र से निकाला गया हो तथा वस्त्र से छाना गया हो और चार प्रकार के-(दालचीनी, इलायची, केशर, कालीमिर्च) सुगंधित द्रव्यों से युक्त किया गया हो, अधिक पथ्यकारी और पचने में हल्का हो तथा शुभ वर्ण गंध रस स्पर्श से समन्वित हो, ऐसे इक्षुरस के समान क्या क्षोदोद का पानी है ? गौतम ! इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्ति करने वाला है। पूर्णभद्र और माणिभद्र (पूर्ण और पूर्णभद्र) नाम के दो महर्द्धिक देव यहां रहते हैं । इस कारण यह क्षोदोदसमुद्र कहा जाता है। शेष कथन पूर्ववत् करना चाहिए यावत् वहां संख्यात-संख्यात चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र और तारागण-कोटी-कोटी शोभित थे, शोभित हैं और शोभित होंगे। १. वृत्तिकारानुसारेण अयमेव पाठः सम्भाव्यते खोदोदस्स णं समुद्दस्स उदए से जहाणामए-वरपुंडगाणं भेरण्डेक्खूणं वा कालपोराणं अवणीयमूलाणं तिभायणिच्छोडियवाडिगाणं गंठिपरिसोहियाणं वत्थपरिपूए चाउज्जायगसुवासिए अहियपत्थलहुए वण्णोववेए तहेव।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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