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________________ ६२] [जीवाजीवाभिगमसूत्र वलयाकार है। वह समचक्रवालसंस्थान से संस्थित है, विषमचक्रवालसंस्थान से नहीं। संख्यात लाख योजन उसका विष्कंभ और परिधि है आदि सब वर्णन पूर्ववत् करना चाहिए यावत् नाम सम्बन्धी प्रश्न करना चाहिए कि क्षीरोद, क्षीरोद क्यों कहलाता है ? गौतम ! क्षीरोदसमुद्र का पानी चक्रवर्ती राजा के लिये तैयार किये गये गोक्षीर (खीर) जो चतु:स्थान-परिणाम परिणत है, शक्कर, गुड़, मिश्री आदि से अति स्वादिष्ट बताई गई है, जो मंदअग्नि पर पकायी गई है, जो आस्वादनीय, विस्वादनीय, प्रीणनीय यावत् सर्व-इन्द्रियों और शरीर को आह्लादित करने वाली है, जो वर्ण से सुन्दर है यावत् स्पर्श से मनोज्ञ है । (क्या ऐसा क्षीरोद का पानी है ?) गौतम ! नहीं, इससे भी अधिक इष्टतर यावत् मन को तृप्ति देने वाला है । विमल और विमलप्रभ नाम के दो महर्द्धिक देव वहां निवास करते हैं । इस कारण क्षीरोदसमुद्र क्षीरोदसमुद्र कहलाता है। उस समुद्र में सब ज्योतिष्क चन्द्र से लेकर तारागण तक संख्यात-संख्यात हैं । घृतवर, घृतोद, क्षोदवर, क्षोदोद की वक्तव्यता १८२. (अ) खीरोदं णं समुदं घयवरे णामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव चिट्ठइ समचक्कवालसंठाणसंठिए नो विसमचक्वालसंठाणसंठिए, संखेजविक्खंभपरिक्खेवे० पएसा जाव अट्ठो। गोयमा ! घयवरेणं दीवे तत्थ-तत्थ बहुओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जावघयोदगपडिहत्थाओ उप्पायपव्वगा जाव खडहड० सव्वकंचणमया अच्छा जाव पडिरूवा। कणयकणयप्पभा एत्थ दो देवा महिड्डिया, चंदा संखेजा। घयवरं णं दीवं घयोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव चिट्ठइ समचक्क ० तहेव दार पदेसा जीवा य अट्ठो ? गोयमा ! घयोदस्स णं समुदस्स उदए-से जहाणामए पप्फुल्लसल्लइविमुक्कल कण्णियारसरसवसुविसुद्धकोरंटदामपिंडिततरस्सनिद्धगुणतेयदीविय निरूवहयविसिट्ठसुन्दरतरस्स सुजाय-दहिमथियतद्दिवसगहियणवणीयपडुवणावियमुक्कड्डिय. उद्दावसज्जवीसंदियस्स अहियं पीवर-सुरहिगंधमणहरमहुरपरिणामदरिसणिजस्स पत्थनिम्मलसुहोवभोगस्स सरयकालम्मि होज गोघयवरस्स मंडए, भवे एयारूवे सिया ? णो तिणठे समढे, गोयमा ! घयोदस्स णं समुदस्स एत्तो इठ्ठतरे जाव अस्साएणं पण्णत्ते, कंतसुकंता एत्थ दो देवा महिड्डिया जाव परिवति, सेसं तं चेव जाव तारागण कोडीकोडीओ। १८२. (अ) वर्तुल और वलयाकार संस्थान-संस्थित घृतवर नामक द्वीप क्षीरोदसमुद्र को सब ओर से घेर कर स्थित है। वह समचक्रवालसंस्थान वाला है, विषमचक्रवालसंस्थान वाला नहीं है। उसका विस्तार और परिधि संख्यात लाख योजन की है। उसके प्रदेशों की स्पर्शना आदि से लेकर यह घृतवरद्वीप क्यों कहलाता है, यहां तक का वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए। गौतम ! घृतवरद्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ीयां आदि हैं जो घृतोदक से
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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