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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: क्षीरवरद्वीप और क्षीरोदसमुद्र ] [६१ गौतम ! वरूणोदसमुद्र में चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, तारा आदि सब संख्यात-संख्यात कहने चाहिए। क्षीरवरद्वीप और क्षीरोदसमुद्र १८१. वारूणवरं णं दीवं खीरवरे णामं दीवे वट्टे जाव चिट्ठइ।सव्वं संखेजगं विक्खंभो य परिक्खेवो य जाव अट्ठो। बहूओ खुड्डा-खुड्डियाओ वावीओ जाव सरसरपंतियाओ खीरोदग पडिहत्थाओ पासाईयाओ ४। तासु णं खुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पायपव्वयगा० सव्वरयणामया जाव पडिरूवा। पुंडरीगपुक्खरदंता एत्थ दो देवा महिड्डिया जाव परिवसंति; से एएणठेणं जाव णिच्चे जोतिसं सव्वं संखेज। ___ खीरवरं णं दीवं खीरोए णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव परिक्खवित्ताणं चिट्ठइ समचक्कवालसंठिए नो विसमचक्कवालसंठिए, संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई विक्खंभपरिक्खेवो तहेव सव्वं जाव अट्ठो। गोयमा ! खीरोयस्स णं समुद्दस्स उदगं' खंडगुडमच्छंडियोववेए रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स उवट्ठविए आसायणिज्जे विस्सायणिज्जे पीणणिजे जाव सव्विदियगायपल्हायणिजे जाव वण्णेणं उवचिए जाव फासेणं भवे एयारूवे सिया ? णो इणढे समढे ।खोरोदस्स णं से उदए एत्तो इट्ठयराए चेव जाव आसाएणं पण्णत्ते। विमलविमलप्पभा एत्थ दो देवा महिड्ढिया जाव परिवति। से तेणढेणं, संखेजं चंदा जाव तारा। १८१. वर्तुल और वलयाकार क्षीरवर नामक द्वीप वरूणवरसमुद्र को सब ओर से घेर कर रहा हुआ है। उसका विष्कंभ (विस्तार) और परिधि संख्यात लाख योजन की है आदि क थन पूर्ववत् कहना चाहिए यावत् नाम सम्बन्धी प्रश्न करना चाहिए। क्षीरवर नामक द्वीप में बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़िया यावत् सरसरपंक्तियां और बिलपंक्तियां हैं जो क्षीरोदक से परिपूर्ण हैं यावत् प्रतिरूप हैं। पुण्डरीक और पुष्करदन्त नाम के दो महर्द्धिक देव वहां रहते हैं यावत् वह शाश्वत है। उस क्षीरवर नामक द्वीप में सब ज्योतिष्कों की संख्या संख्यात-संख्यात कहनी चाहिए। उक्त क्षीरवर नामक द्वीप को क्षीरोद नामका समुद्र. सब ओर से घेरे हुए स्थित है। वह वर्तुल और १. अत्र एवंभूतोऽपि पाठः दृश्यते प्रतिषु परं टीकाकारेण न व्याख्यातं टीकामूलपाठयोर्महद्वैषम्यमत्रान्यत्रापि । "से जहाणामए-सुउसुहीमारूपण्णअज्जुणतरूगणसरसपत्तकोमलअत्थिग्गत्तणग्गपोंडगवरूच्छुचारिणीणं लवंगपत्तपुप्फपल्लवकक्कोलगसफल-रूक्खबहुगुच्छगुम्मकलियमलट्ठिमधुपयुरपिपपलीफलितवल्लिवरविवरचारिणीणं अप्पोदगपीतसइरस समभूमिभागणिभयसुहोसियाणं सुप्पेसियसुहात-रोगपरिवज्जिताणं णिरूवहयसरीराणं कालप्पसविणीणं बितियततियसमप्पसूयाणं अंजणवरगवलवलयजलधरजच्चंणरिट्ठभमरपभूयसमप्पभाणं कुंडदोहणाणं बद्धत्थिपत्थुयाणं रूढाणं मधुमासकाले संगहनेहो अज्जचातुरक्केव होज्ज तासिं खीरे मधुररस विवगच्छबहुदव्वसंपउत्ते पत्तेयं मंदग्गिसुकढिए आउत्ते खंडगुड......।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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