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________________ [५७ तृतीय प्रतिपत्ति : पुष्करोदसमुद्र की व्यक्तव्यता] गौतम ! जधन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक इन्द्रस्थान इन्द्रोत्पत्ति से विरहित हो सकता पुष्करोदसमुद्र की व्यक्तव्यता १८०.(अ) पुखरवरं णं दीवं पुक्खरोदे णामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए जाव संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ। पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! संखे जाई जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खं भेणं संखेजाइं जोयणसयसहस्साई परिक्खेवेणं पण्णत्ते। पुक्खरोदस्स णं समुद्दस्स कति दारा पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि दारा पण्णत्ता, तहे व सव्वं पुक्खरोदसमुद्दपुरथिमपेरं ते वरूणवरदीवपुरथिमद्धस्स पच्चत्थिमेणं एत्थ णं पुक्खरोदस्स विजए नामं दारे पण्णत्ते, एवं सेसाणवि। दारंतरम्मि संखेज्जाइं जोयणसयसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। पदेसा जीवा य तहेव। से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ पुक्खरोदे पुक्खरोदे ? गोयमा ! पुक्खरोदस्स णं समुदस्स उदगे अच्छे पत्थे जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे पगईए उदगरसेणं सिरिधर-सिरिप्पभा य दो देवा जाव महिड्ढिया जाव पलिओवमद्विइया परिवसंति। से एतेणठेणं जाव णिच्चे। पुक्खरोदे णं भंते ! समुद्दे केवइया चंदा पभासिंसु वा ३? संखेजा चंदा पभासेंसु वा ३ जाव तारागणकोडीकोडीओ सोभेसु वा ३। १८०. (अ) गोल और वलयाकार संस्थान से संस्थित पुष्करोद नाम का समुद्र पुष्करवरद्वीप को सब ओर से घेरे हुए स्थित है। भगवन् ! पुष्करोदसमुद्र का चक्रवालविष्कंभ कितना है और उसकी परिधि कितनी है? गौतम ! संख्यात लाख योजन का उसका चक्रवालविष्कभ हैं और संख्यात लाख योजन की ही उसकी परिधि है। (वह पुष्करोद एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से सब और से घिरा हुआ है।) भगवन् ! पुष्करोदसमुद्र के कितने द्वार हैं ? गौतम ! चार द्वार हैं आदि पूर्ववत कथन करना चाहिए यावत् पुष्करोदसमुद्र के पूर्वी पर्यन्त में और वरूणवरद्वीप के पूर्वार्ध के पश्चिम में पुष्करोदसमुद्र का विजयद्वार है (जम्बूद्वीप के विजयद्वार की तरह सब कथन करना चाहिए।) यावत् राजधानी अन्य पुष्करोदसमुद्र में कहनी चाहिए। इसी प्रकार शेष द्वारों का भी कथन कर लेना चाहिए ।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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