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[ जीवाजीवाभिगमसूत्र
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लवणसमुद्र में जानने चाहिए। एक-एक चन्द्र के परिवार में ८८-८८ ग्रह हैं, ८८x४= ३५२ ग्रह लवणसमुद्र में जानने चाहिए। एक चन्द्र के परिवार में छियासठ हजार नौ सौ पचहत्तर कोडाकोडी तारागण हैं तो इस राशि में चार का गुणा करने पर दो लाख सड़सठ हजार नौ सौ कोडाकोडी तारागण लवणसमुद्र में
हैं ।) ॥२६॥
मनुष्यक्षेत्र के बाहर जो चन्द्र और सूर्य हैं, उनका अन्तर पचास-पचास हजार योजन का है। यह अन्तर चन्द्र से सूर्य का और सूर्य से चन्द्र का जानना चाहिए ॥ २७ ॥
सूर्य से सूर्य का ओर चन्द्र से चन्द्र का अन्तर मानुषोत्तरपर्वत के बाहर एक लाख योजन का है ॥२८ ॥
(मनुष्यलोक से बाहर पंक्तिरूप में अवस्थित ) सूर्यान्तरित चन्द्र और चन्द्रान्तरित सूर्य अपने अपने तेज:पुंज से प्रकाशित होते है इनका अन्तर और प्रकाशरूप लेश्या विचित्र प्रकार की है। (अर्थात चन्दमा का प्रकाश शीतल है और सूर्य का प्रकाश उष्ण है। इन चन्द्र सूर्यों का प्रकाश एक दूसरे से अन्तरित होने से न तो मनुष्यलोक की तरह अति शीतल या अति उष्ण होता है किन्तु सुख - रूप होता है ) ॥२९॥
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एक चन्द्रमा के परिवार में ८८ ग्रह और २८ नक्षत्र होते हैं । ताराओं का प्रमाण आगे की गाथाओं में कहते है ॥३०॥
एक चन्द्र के परिवार में ६६ हजार ९ सौ ७५ कोडाकोडी तारे हैं ॥३१ ॥
मनुष्यक्षेत्र के बाहर के चन्द्र और सूर्य अवस्थित योग वाले हैं । चन्द्र अभिजित्नक्षत्र से और सूर्य पुष्यनक्षत्र से युक्त रहते हैं। (कहीं कहीं " अवट्ठिया तेया" ऐसा पाठ है, उसके अनुसार अवस्थित तेज वाले हैं, अर्थात् वहां मनुष्यलोक की तरह कभी अतिउष्णता और कभी अतिशीतलता नहीं होती है ।) ॥३२ ॥
विवेचन - उक्त गाथाएं स्पष्टार्थ वाली हैं। केवल १३वीं गाथा में जो कहा गया है कि इन चन्द्र सूर्य नक्षत्र ग्रह और ताराओं की चालविशेष से मनुष्यों के सुख-दुःख प्रभावित होते हैं, इसका स्पष्टीकरण करते हुए वृत्तिकार लिखते हैं कि मनुष्यों के कर्म सदा दो प्रकार के होते हैं - शुभवेद्य और अशुभवेद्य । कर्मों के विपाक (फल) के हेतु सामान्यतया पांच हैं - द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव । कहा हैउदयक्खयखओवसमोवसमा जं च कम्मुणो भणिया ।
दव्वं खेत्तं कालं भावं भवं च संपप्प ॥ १ ॥
अर्थात- कर्मों के उदय, क्षय, क्षयोपशम और उपशम में द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव निमित्त होते हैं ।
प्राय: शुभवेद्य कर्मों के विपाक में शुभ द्रव्य क्षेत्रादि सामग्री हेतुरूप होती है और अशुभवेद्य कर्मो के विपाक में अशुभ द्रव्य-क्षेत्र आदि सामाग्री कारणभूत होती है। इसलिए जब जिन व्यक्तियों के जन्मनक्षत्रादि के अनुकूल चन्द्रादि की गति होती है तब उन व्यक्तियों के प्रायः शुभवेद्य कर्म तथाविध विपाक सामग्री पाकर उदय में आते हैं, जिनके कारण शरीर नीरोगता, धनवृद्धि, वैरोपशमन, प्रियसम्प्रयोग, कार्यसिद्धि आदि होने से सुख प्राप्त होता है। अतएव परम विवेकी बुद्धिमान् व्यक्ति किसी भी कार्य को