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तृतीय प्रतिपत्ति: समयक्षेत्र ( मनुष्यक्षेत्र) का वर्णन ]
कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष होते हैं ? ॥१६ ॥
गौतम ! कृष्ण वर्ण का राहु-विमान चन्द्रमा से सदा चार अंगुल दूर रहकर चन्द्रविमान के नीचे चलता है। (इस तरह चलता हुआ वह शुक्लपक्ष में धीरे-धीरे चन्द्रमा को प्रकट करता है और कृष्णपक्ष में धीरे-धीरे उसे ढंक लेता है ॥१७॥ )
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शुक्लपक्ष चन्द्रमा प्रतिदिन चन्द्रविमान के ६२ भाग प्रमाण बढ़ता है और कृष्णपक्ष में ६२ भाग प्रमाण घटता है। [यहां ६२ भाग का स्पष्टीकरण ऐसा करना चाहिए कि चन्द्रविमान के ६२ भाग करने चाहिए। इनमें से ऊपर के दो भाग स्वभावत: आवार्य ( आवृत होने योग्य) न होने से उन्हें छोड़ देना चाहिए। शेष ६० भागों को १५ से भाग देने पर चार-चार भाग प्राप्त होते हैं। ये चार-चार भाग ही यहां ६२ भाग का अर्थ समझना चाहिए। चूर्णिकार ने भी ऐसी ही व्याख्या की है। परम्परानुसार सूत्रव्याख्या करनी चाहिए स्व- - बुद्धि से नहीं । ॥ १८ ॥
चन्द्रविमान के पन्द्रहवें भाग को कृष्णपक्ष में राहुविमान अपने पन्द्रहवें भाग से ढंक लेता है और शुक्लपक्ष में उसी पन्द्रहवें भाग को मुक्त कर देता है ॥ १९ ॥
इस प्रकार चन्द्रमा की वृद्धि और हानि होती है और इसी कारण कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष होते हैं ॥२०॥
मनुष्यक्षेत्र के भीतर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र एवं तारा - ये पांच प्रकार के ज्योतिष्क गतिशील हैं ॥२१॥
अढ़ाई द्वीप से आगे - (बाहर) जो पांच प्रकार के चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा हैं वे गति नहीं करते, (मण्डल गति से) विचरण नहीं करते अतएव अवस्थित ( स्थित ) हैं ॥२२॥
इस जम्बूद्वीप में दो चन्द्र और दो सूर्य हैं। लवणसमुद्र में चार चन्द्र और चार सूर्य हैं । धातकीखण्ड में बारह चन्द्र और बारह सूर्य हैं ॥ २३ ॥
जम्बूद्वीप में दो चन्द्र और दो सूर्य हैं। इनसे दुगुने लवणसमुद्र में हैं और लवणसमुद्र के चन्द्रसूर्यो के तिगुने चन्द्र-सूर्य धातकीखण्ड में हैं ॥ २४ ॥
धातकीखण्ड के आगे के समुद्र और द्वीपों में चन्द्रों ओर सूर्यों का प्रमाण पूर्व के द्वीप या समुद्र के प्रमाण से तिगुना करके उसमें पूर्व-पूर्व के सब चन्द्रों और सूर्यों को जोड़ देना चाहिए। (जैसे धातकीखण्ड में १२ चन्द्र और १२ सूर्य कहे हैं तो कालोदधिसमुद्र में इनसे तिगुने अर्थात् १२×३=३६ तथा पूर्व-पूर्व के - जम्बूद्वीप के २ और लवणसमुद्र के ४, कुल ६ जोड़ने पर ४२ चन्द्र और सूर्य कालोद समुद्र में हैं। इसी विधि से आगे के द्वीप समुद्रों में चन्द्रों और सूर्यों की संख्या का प्रमाण जाना जा सकता हैं ॥२५॥
जिन द्वीपों और समुन्द्रों में नक्षत्र, ग्रह एवं तारा का प्रमाण जानने की इच्छा हो तो उन द्वीपों और समुद्रों के चन्द्र सूर्यों के साथ एक-एक चन्द्र-सूर्य परिवार से गुणा करना चाहिए। (जैसे लवणसमुद्र में ४ चन्द्रमा हैं। एक-एक चन्द्र के परिवार में २८ नक्षत्र हैं तो २८ को ४ से गुणा करने पर ११२ नक्षत्र