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________________ ४६ ] [ जीवाजीवाभिगमसूत्र रिक्खग्गहतारग्गं दीवसमुद्दे जहिच्छ से नाउं । तस्स ससीहिं गुणियं रिक्खग्गहतार गाणं तु ॥ २६ ॥ चंदाओ सूरस्स य सूरा चंदस्स अंतरं होइ । पन्नास सहस्साइं तु जोयणाणं अणूणाई ॥ २७ ॥ सूरस्स य सूरस्सय ससिणो ससिणो य अंतरं होई । बहियाओ मणुस्सनगस्सं जोयणाणं सयसहस्सं ॥ २८ ॥ सूरं तरिया चंदा चंदंतरिया य दिणयरा दित्ता । चित्तंतरले सागा सुहलेसा मंदलेसा य ॥२९॥ अट्ठासीइं च गहा अट्ठावीसं च होंति नक्खत्ता । एगससिपरिवारो एत्तो ताराणं वोच्छामि ॥३०॥ छावट्ठि सहस्साइं नव चेव सयाई पंचसयराई । एगससिपरिवारो तारागणको डिकोडीणं ॥३१ ॥ बहियाओ मणुस्सनगस्स चंदसूराण अवट्ठिया जोगा । चंदा अभीइजुत्ता सूरा पुण होंति पुस्सेहिं ॥३२॥ १७७. (इ) नक्षत्र और ताराओं के मण्डल अवस्थित हैं । अर्थात ये नियतकाल तक एक मण्डल में रहते हैं । (किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि ये विचरण नहीं करतें), ये भी मेरूपर्वत के चारों ओर प्रदक्षिणावर्तमण्डल गति से परिभ्रमण करते हैं ॥ ११ ॥ चन्द्र और सूर्य का ऊपर और नीचे संक्रम नहीं होता ( क्योंकि ऐसा ही जगत स्वभाव है।) इनका विचरण तिर्यक् दिशा में सर्व आभ्यन्तर मण्डल से सर्वबाह्यमण्डल तक और सर्ववाह्यमण्डल से सर्व आभ्यन्तरमण्डल तक होता रहता है ॥ १२ ॥ चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, महाग्रह, और ताराओं की गतिविशेष से मनुष्यों के सुख-दुख प्रभावित होते ॥१३॥ सर्वबाह्यमण्डल से आभ्यन्तरमण्डल में प्रवेश करते हुए, सूर्य और चन्द्रमा का तापक्षेत्र प्रतिदिन क्रमशः नियम से आयाम की अपेक्षा बढ़ता जाता है और जिस क्रम से वह बढ़ता है उसी क्रम से सर्वाभ्यन्तरमण्डल से बाहर निकलने वाले सूर्य और चन्द्रमा का तापक्षेत्र प्रतिदिन क्रमश: घटता जाता है ॥१४॥ उन चन्द्र-सूर्यो के तापक्षेत्र का मार्ग कदंबपुष्प के आकार जैसा है। यह मेरू की दिशा में संकुचित है और लवणसमुद्र की दिशा में विस्तृत है ॥ १५ ॥ भगवन् ! चन्द्रमा शुक्लपक्ष में क्यों बढ़ता है और कृष्णपक्ष में क्यों घटता है ? किस कारण से
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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