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तृतीय प्रतिपत्ति : समयक्षेत्र ( मनुष्यक्षेत्र) का वर्णन ]
रयणियरदिणयराणं उड्ढे व अहे व संकमो णत्थि। मंडलसंकमण पुण अभितर बाहिरं तिरिए॥१२॥ रयणियरदिणयराणं नक्खत्ताणं महग्गहाणं च।। चारविसेसेण भवे सुहदुक्खविही मणुस्साणं ॥१३॥ तेसिं पविसंताणं तावक्खेत्तं तु वड्डए नियमा।। तेणेव कमेण पुणो परिहायई निवखमंताणं ॥१४॥ तेसिं कलंबुयापुप्फसंठिया होई तावखेत्तपहा। अंतो य संकु या बाहिं वित्थडा चंदसूराणं ॥१५॥ केणं वड्डइ चंदो परिहाणी केण होई चंदस्स। कालो वा जोण्हो वा केण अणुभावेण चंदस्स ॥१६॥ किण्हं राहुविमाणं निच्चं चंदेण होइ अविरहियं। चउरं गुलमप्पत्तं हिट्ठा चंदस्स तं चरइ ॥१७॥ बावटुिं बावट्ठि दिवसे दिवसे उ सुक्कपक्खस्स। जं परिवड् ढे इ चंदो, खवेइ तं चेव कालेणं ॥१८॥ पन्नरसइभागेण य चंदं पन्नर समेव तं वरइ। पन्नरसइभागेण य पुणो वि तं चेवतिक्कमइ ॥१९॥ एवं वड्व इ चंदो परिहाणी एव होई चंदस्स। कालो वा जोण्हा वा तेणणुभावेण चंदस्स ॥२०॥ अंतो मणुस्सखेत्ते हवंति चारोवगा य उववण्णा। पंचविहा जोइसिया चंदा सूरा गह गणा य ॥२१॥ तेण परं जे सेसा चंदाइच्चगह तार नक्खत्ता। नत्थि गई न वि चारो अवट्ठिया ते मुणेयव्वा ॥२२॥ दो चंदा इह दीवे चत्तारि य सागरे लवणतोए। धायइसंडे दीवे बारस चंदा य सूरा य॥२३॥ दो दो जंबूद्दीवे ससिसूरा दुगुणिया भवे लवणे। लावणिगा य तिगुणिया ससिसूरा धायइसंडे ॥२४॥ धायइसंडप्पभिई उद्दिट्ठ तिगुणिया भवे चंदा। आइल्ल चंदसहि या अणंतराणंतरे खेत्ते ॥२५॥