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[ जीवाजीवाभिगमसूत्र
विवेचन - सब जगह तारा-परिमाण में कोटी-कोटी से मतलब क्रोड (कोटि) ही समझना चाहिए। पूर्वाचार्यों ने ऐसी ही व्याख्या की है। क्योंकि क्षेत्र थोड़ा है। अन्य आचार्य उत्सेधांगुलप्रमाण से कोटिकोटि की संगति करते है । कहा है
"कोडाकोडी सन्नंतरं तु मन्नंति केई थोवतया । अन्न उत्सेहांगुलमाणं काऊण ताराणं" ॥१॥
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-वृत्ति
समयक्षेत्र (मनुष्य क्षेत्र ) का वर्णन
१७७. (अ) समयखेत्ते णं भंते ! केवइयं आयामविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ?
गोयमा ! पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं एगा जोयणकोडी जाव अब्भितर पुक्खरद्धपरिरओ से भाणियव्वो जाव अऊणपणे।
सेकेणट्ठे भंते! एवं वुच्चइ - माणुसखेते माणुसखेत्ते ?
गोयमा ! माणुस्सखेत्तेणं तिविहा मणुस्सा परिवसंति, तं जहा-कम्मभूमगा अकम्मभूमगा अंतरदीवगा। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ माणुसखेत्ते माणुसखेत्ते ।
माणुसखेत्ते णं भंते! कति चंदा पभासिंसु वा ३, कइ सूरा तविंसु वा ३ ?
बत्तीसं चंदसयं बत्तीसं चेव सूरियाण सयं । सयलं मणुस्सलोयं चरेंति एए पभासंता ॥ १ ॥ एक्कारस य सहस्सा छप्पि य सोलगमहग्गहाणं तु । छच्च सया छण्णउया णक्खत्ता तिण्णि य सहस्सा ॥ २ ॥ अडसीइ सयसहस्सा चत्तालीस सहस्स मणुयलोगंमि । सत्य या अणूणा तारागणकोडिकोडीणं ॥३॥
सोभं सासु वा ३ ।
१७७. (अ) हे भगवन् ! समयक्षेत्र ( मनुष्यक्षेत्र) का आयाम - विष्कंभ कितना और परिधि कितनी है ?
गौतम ! समयक्षेत्र आयाम - विष्कंभ से पैतालीस लाख योजन का है और उसकी परिधि वही है जो आभ्यन्तर पुष्करवरद्वीप की कही । अर्थात् एक करोड़, बयालीस लाख, तीस हजार, दो सौ उनपचास योजन की परिधि है ।