________________
तृतीय प्रतिपत्ति: समयक्षेत्र ( मनुष्यक्षेत्र) का वर्णन ]
[ ४३
हे भगवन् ! मनुष्यक्षेत्र, मनुष्यक्षेत्र क्यों कहलाता है ?
गौतम ! मनुष्यक्षेत्र में तीन प्रकार के मनुष्य रहते हैं, यथा- कर्मभूमक, अकर्मभूमक और अन्तर्द्धापक । इसलिए यह मनुष्यक्षेत्र कहलाता है ।
हे भगवन् ! मनुष्यक्षेत्र में कितने चन्द्र प्रभासित होते थे, प्रभासित होते हैं और प्रभासित होंगे ? कितने सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे ? आदि प्रश्न कर लेना चाहिए ।
गौतम ! समयक्षेत्र में एक सौ बत्तीस चन्द्र और एक सौ बत्तीस सूर्य प्रभासित होते हुए सकल मनुष्यक्षेत्र में विचरण करते हैं ॥१ ॥
गयारह हजार छह सौ सोलह महाग्रह यहां अपनी चाल चलते हैं और तीन हजार छह सौ छियानवे नक्षत्र चन्द्रादिक के साथ योग करते है ॥२ ॥
अठासी लाख चालीस हजार सात सौ (८८४०७००) कोटाकोटी तारागण मनुष्यलोक में शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होगे ॥३॥
१७७. (आ) एसो तारापिंडो सव्वसमासेण मणुयलो गम्मि |
बहिया पुण ताराओ जिणेहिं भणिया असंखेज्जा ॥ १ ॥ एवइयं तारग्गं जं भणियं माणुसम्मि लोगम्मि । चारं कलुंबयापुप्फसंठियं जोइसं चरइ ॥ २ ॥ रवि-ससि-गह-नक्खत्ता एवइया आहिया मणुयलोए । जेसिं नामागोयं न पागया पन्नवेहिंति ॥३॥ छावट्ठि पिडगाई चंदा इच्चा मणुयलोगंमि । दो चन्दा दो सुराय होंति एक्क्क्कए पिडए ॥४ ॥ छावट्ठि पिडगाईं चंदाइच्चा मणुयलो गम्मि । छप्पन्नं नक्खत्ता य होंति एक्केक्कए पिडए ॥५॥ छावट्ठि पिडगाई महग्गहाणं तु मणुयलोगम्मि । छावत्तरं गहसयं य होइ एक्क्कए पिडए ॥ ६ ॥ चत्तारि य पंतीओ चंदाइच्चाण मणुयलोगम्मि । छावट्ठिय छावट्ठिय होइ य एक्केक्किया पंती ॥७॥ छप्पनं पंतीओ नक्खत्ताणं तु मणुयलोगम्मि । छावट्ठी छावट्ठी य होइ एक्वेक्किया पंती ॥८ ॥