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तृतीय प्रतिपत्ति: गोतीर्थ- प्रतिपादन ]
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है। तो भगवन्! वह लवणसमुद्र जम्बूद्वीप नामक द्वीप को जल आप्लावित क्यों नहीं करता, क्यों प्रबलता के साथ उत्पीड़ित नहीं करता? और क्यों उसे जलमग्न नहीं कर देता ?
गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में भरत ऐरवत क्षेत्रों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंधाचारण आदि विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियां, श्रावक और श्राविकाएं हैं, (यह कथन तीसरे चौथेपांचवें आरे की अपेक्षा से है।) (प्रथम आरे की अपेक्षा) वहां के मनुष्य प्रकृति से भद्र, प्रकृति से विनीत, उपशान्त, प्रकृति से मन्द क्रोध - मान-माया - लोभ वाले, मृदु- मार्दवसम्पन्न, आलीन, भद्र और विनीत है, उनके प्रभाव से लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जल - आप्लावित, उत्पीड़ित और जलमग्न नहीं करता है । (छठे आरे की अपेक्षा से) गंगा - सिन्धु-रक्ता और रक्तवती नदियों में महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थितवाली देवियां रहती हैं। उनके प्रभाव से लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जलमग्न नहीं
करता ।
क्षुल्लक हिमवंत और शिखरी वर्षधर पर्वतों में महर्द्धिक देव रहते हैं, उनके प्रभाव से, हेमवत - ऐरण्यवत वर्षों ( क्षेत्रों) में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, उनके प्रभाव से, रोहितांश, सुवर्णकूला और रूप्यकूला नदियों में जो महर्द्धिक देवियां हैं, उनके प्रभाव से, शब्दापाति विकटापाति वृत्तवैताढ्य पर्वतों में महर्द्धिक पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते हैं, उनके प्रभाव से,
महाहिमवंत और रूक्मि वर्षधरपर्वतों में महर्द्धिक यावत् पल्योपम स्थितिवाले देव रहते हैं, उनके प्रभाव से
हरिवर्ष और रम्यकवर्ष क्षेत्रों में मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत हैं, गंधापति और मालवंत नाम वृत्तवैताढय पर्वतों में महर्द्धिक देव हैं, निषध और नीलवंत वर्षधरपर्वतों में महर्द्धिक देव है, इसी तरह सब द्रहों की देवियों का कथन चाहिए, पद्मद्रह तिगिंछद्रह केसरिद्रह आदि द्रहों से महर्द्धिक देव रहते हैं, उनके प्रभाव से,
पूर्वविदेहों ओर पश्चिमविदेहों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंधाचारण विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियां, श्रावक, श्राविकाएं एव मनुष्य प्रकृति से भद्र यावत् विनीत, हैं, उनके प्रभाव से,
मेरूपर्वत के महर्द्धिक देवों के प्रभाव से, (उत्तरकुरू में) जम्बू सुदर्शना में अनाहत नामक जंबूद्वीप का अधिपति महर्द्धिक यावत् पल्योपम स्थिति वाला देव रहता हैं, उसके प्रभाव से लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जल से आप्लावित, उत्पीड़ित और जलमग्न नहीं करता है।
गौतम ! दूसरी बात यह है कि लोकस्थिति और लोकस्वभाव ( लोकमर्यादा या जगत्-स्वभाव ) ही ऐसा है कि लवणसमुद्र जंबूद्वीप को जल से आप्लावित, उत्पीड़ित और जलमग्न नहीं करता है । ॥ तृतीय प्रतिपत्ति में मन्दरोद्देशक समाप्त ॥