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[जीवाजीवाभिगमसूत्र ___ जहा णं भंते ! लवणसमुद्दे अत्थि वेलंधराइ वा णागराया अग्धा सीहा विजाई वा हासबुड्डीइ वा तहा णं बहिरेसु वि समुद्देसु अत्थि वेलंधराइ वा नागरायाइ वा अग्धाइ वा खन्नाइ वा सीहाइ वा विजाई वा हासवुड्डीइ वा ? णो तिणढे समढे।
१६८. हे भगवन् ! लवणसमुद्र में वेलंधर नागराज हैं क्या? अग्धा, खन्ना, सीहा, विजाति मच्छकच्छप हैं क्या ? जल की वृद्धि और ह्रास है क्या?
गौतम ! हां हैं।
हे भगवन् ! जैसे लवणसुमद्र में वेलंधर नागराज हैं , अग्धा, खन्ना, सीहा, विजाति, ये मच्छकच्छप हैं ? वैसे अढ़ाई द्वीप से बाहर के समुद्रों में भी ये सब हैं क्या ?
हे गौतम ! बाह्य समुद्रों में ये नहीं हैं।
१६९. लवणे णं भंते ! किं समुद्दे ऊसिओदगे किं पत्थडोदगे किं खुभियजले किं अखुभियजले?
गोयमा ! लवणे णं समुद्दे ऊसिओदगे नो पत्थडोदगे खुभियजले नो अक्खुभियजले। तहा णं बाहिरगा समुद्दा किं ऊसिओदगा पत्थडोदगा खुभियजला अखुभियजला?
गोयमा ! बाहिरगा समुद्दा नो ऊसिओदगा पत्थडोदगा, न खुभियजला अक्खुभियजला पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठति।
अस्थि णं भंते ! लवणसमुद्दे बहवो ओराला वलाहका संसेयंति संमुच्छंति वा वासं वासंति वा ? हंता अत्थि।
जहा णं भंते ! लवणसमुद्दे बहवे ओराला बलाहका संसेयंति संमुच्छंति वासं वासंति वा तहा णं बाहिरएसु वि समुद्देसु बहवे ओराला बलाहका संसेयंति संमुच्छांति वासं वासंति ?
णो तिणठे समठे।
से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ-बाहिरगा णं समुद्दा पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडियाए चिट्ठति ?
गोयमा ! बाहिरएसु णं समुद्देसु बहवे उदगजोणिया जीवा य पोग्गला य उदगत्ताए वक्कमंति विउक्कमति चयंति उवचयंति, से तेणढेणं एवं वुच्चइ बाहिरगा समुद्दा पुण्णा पुण्णप्पमाणा जाव समभरघडत्ताए चिट्ठति।
१६९. हे भगवन् ! लवणसमुद्र का जल उछलने वाला हैं या प्रस्तट की तरह स्थिर अर्थात् सर्वत:सम रहने वाला है? उसका जल क्षुभित होने वाला है या अक्षुभित रहता है?
गौतम ! लवणसमुद्र का जल उछलने वाला है, स्थिर नहीं हैं, क्षुभित होने वाला है, अक्षुभित रहने वाला नहीं।