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[जीवाजीवाभिगमसूत्र देवदीवा चंदादीवा एवं सूराणं वि।णवरं पच्चथिमिल्लाओ वेदियंताओ पच्चत्थिमेण च भाणियव्वा, तम्मि चेव समुद्दे।
कहि णं भंते ! देवसमुद्दगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! देवोदगस्स समुद्दगस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ देवोदगं समुदं पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं तेणेव कमेणं जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं देवोदगं समुदं असंखेजाइं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं देवोदगाणं चंदाणं चंदाओ णामं रायहाणीओ पण्णत्ताओ। तं चेव सव्वं । एवं सूराणवि। णवरि देवोदगस्स पच्चथिमिल्लाओ वेदियंताओ देवोदगसमुदं पुरथिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता रायहाणीओ सगाणं सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं देवोदगं समुद्दे असंखेज्जाई जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता। एवं णागे जक्खे भूएवि चउण्हं दीव-समुद्दाणं।
१६७. (अ) हे भगवन् ! देवद्वीपगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप कहां हैं? गौतम! देवद्वीप की पूर्वदिशा के वेदिकान्त से देवोदसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर वहां देवद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं , इत्यादी पूर्ववत् राजधानी पर्यन्त कहना चाहिए। अपने ही चन्द्रद्वीपों की पश्चिमदिशा में उसी देवद्वीप में असंख्यात हजार योजन जाने पर वहां देवद्वीप के चन्द्रों की चन्द्रा नामक राजधानियां हैं। शेष वर्णन विजया राजधानीवत् कहना चाहिए।
__ हे भगवन् ! देवद्वीप के सूर्यों के सूर्यद्वीप नामक द्वीप कहां हैं? गौतम! देवद्वीप के पश्चिमी वेदिकान्त से देवोदसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर देवद्वीप के सूर्यों के सूर्यद्वीप हैं अपने-अपने ही सूर्यद्वीपों की पूर्वदिशा में उसी देवद्वीप में असंख्यात हजार योजन जाने पर उनकी राजधानियां हैं। ___ हे भगवन् ! देवसमुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप कहां हैं? गौतम! देवोदकसमुद्र के पूर्वी वेदिकान्त से देवोदकसमुद्र में पश्चिमदिशा में बारह हजार योजन जाने पर यहां देवसमुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं , आदि क्रम से राजधानी पर्यन्त कहना चाहिए। उनकी राजधानियां अपने-अपने द्वीपों के पश्चिम में देवोदकसमुद्र में असंख्यात हजार योजन जाने पर स्थित हैं । शेष वर्णन विजया राजधानियां के समान कहना चाहिए।
देवसमुद्रगत सूर्यों के विषय में भी ऐसा ही कहना चाहिए। विशेषता यह है कि देवोदकसमुद्र के पश्चिमी वेदिकान्त से देवोदक समुद्र में पूर्व दिशा में बारह हजार योजन जाने पर ये स्थित हैं। इनकी राजधनियां अपने-अपने द्वीपों के पूर्व में देवोदकसमुद्र में असंख्यात हजार योजन आगे जाने पर आती हैं। इसी प्रकार नाग, यक्ष, भूत और स्वयंभूरमण चारों द्वीपों और चारों समुद्रों के चन्द्र - सूर्यों के द्वीपों के विषय में कहना चाहिए। स्वयंभूरमणद्वीपगत चन्द्र-सूर्यद्वीप
१६७. (आ) कहि णं भंते ! सयंभूरमणदीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ?
सयंभूरमणस्स दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ सयंभूरमणोदगं समुदं बारस जोयणसहस्साइं तहेव रायहाणीओ सगाणं सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं संयभूरमणोदगं समुदं