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तृतीय प्रतिपत्ति: देवद्वीपादि में विशेषता]
[२१ इसी प्रकार शेष द्वीपगत चन्द्रों की राजधानियां चन्द्रद्वीपगत पूर्वदिशा की वेदिकान्त से अनन्तर समुद्र में बारह हजार योजन जाने पर कहनी चाहिए। शेष द्वीपगत सूर्यों के सूर्यद्वीप अपने द्वीपगत पश्चिम वेदिकान्त से अनन्तर समुद्र में हैं, चन्द्रों की राजधानियां अपने-अपने चन्द्रद्वीपों से पूर्वदिशा में अन्य अपने-अपने नाम वाले द्वीप में हैं, सूर्यों की राजधानियां अपने-अपने सूर्यद्वीपों से पश्चिमदिशा में अन्य अपने सदृश नाम वाले द्वीप में बारह हजार योजन के बाद हैं।
शेष समुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप अपने-अपने समुद्र के पूर्व वेदिकान्त से पश्चिमदिशा में बारह हजार योजन के बाद हैं। सूर्यों के सूर्यद्वीप अपने-अपने समुद्र के पश्चिमी वेदिकान्त से पूर्वदिशा में बारह हजार योजन के बाद हैं। चन्द्रों की राजधानियां अपने-अपने द्वीपों की पूर्वदिशा में अन्य अपने जैसे नाम वाले समुद्रों में हैं । सूर्यों की राजधानियां अपने-अपने द्वीपों की पश्चिमदिशा में हैं। १६६. इमे णामा अणुगंतव्वा'
जंबुद्दीवे लवणे धायइ-कालोद-पुक्खरे वरूणे। खीर-घय-इक्खु (वरो य) णंदी अरूणवरे कुंडले रूयगे॥१॥ आभरण-वत्थ-गंधे उप्पल-तिलए य पुढवि-णिहि-रयणे। वासहर-दह-नईओ विजयावक्खार-कप्पिंदा ॥२॥
पुर-मंदरमावासा कूडा णक्खत्त-चंद-सूरा य। एवं भाणियव्वं । १६६. असंख्यात द्वीप और समुद्रों में से कितनेक द्वीपों और समुद्रों के नाम इस प्रकार हैं -
जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्डद्वीप, कालोदसमुद्र, पुष्कर वरद्वीप, पुष्करवरसमुद्र, वारूणिवरद्वीप, वारूणिवरसमुद्र, क्षीरवरद्वीप, क्षीरवरसमुद्र, घृतवरद्वीप, घृतवरसमुद्र, इक्षुवरद्वीप, इक्षुवरसमुद्र, नंदीश्वरद्वीप, नन्दीश्वरसमुद्र, अरूणवरद्वीप, अरूणवरसमुद्र, कुण्डलद्वीप, कुण्डलसमुद्र, रूचकद्वीप, रूचकसमुद्र, आभरणद्वीप आभरणसमुद्र, वस्त्रद्वीप, वस्त्रसमुद्र, गन्धद्वीप, गन्धसमुद्र; उत्पलद्वीप, उत्पलसमुद्र, तिलकद्वीप, तिलकसमुद्र, पृथ्वीद्वीप, पृथ्वीसमुद्र, निधिद्वीप, निधिसमुद्र, रत्नद्वीप, रत्नसमुद्र, वर्षधरद्वीप, वर्षधरसमुद्र, द्रहद्वीप, द्रहसमुद्र, नंदीद्वीप, नंदीसमुद्र, विजयद्वीप,विजयसमुद्र, वक्षस्कारद्वीप,वक्षस्कारसमुद्र, कपिद्वीप,कपिसमुद्र, इन्द्रद्वीप, इन्द्रसमुद्र, पुरद्वीप, पुरसमुद्र, मन्दरद्वीप, मन्दरसमुद्र, आवासद्वीप, आवाससमुद्र, कूटद्वीप, कूटसमुद्र, नक्षत्रद्वीप, नक्षत्रसमुद्र, चन्द्रद्वीप, चन्द्रसमुन्द्र, सूर्यद्वीप, सूर्यसमुद्र, इत्यादि अनेक नाम वाले द्वीप और समुद्र हैं। देवद्वीपादि में विशेषता
१६७. (अ) कहि णं भंते ! देवद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता? गोयमा ! देवदीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेइयंताओ देवोदं समुदं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता तेणेव कमेण जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरतिमेणं देवद्दीवं समुदं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं देवदीवयाणं चंदाणं चंदाओ णामं रायहाणीओ पण्णत्ताओ। सेसं वं चेव। १. वृत्ति में इस सूत्र की व्याख्या नहीं है, न इस सूत्र का उल्लेख ही है।