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________________ [ जीवाजीवाभिगमसूत्र गोयमा ! कालोयसमुद्दस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयसमुद्दं पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं कालोयगचंदाणं चंददीवा पण्णत्ता सव्वओ समंता दो कोसा ऊसिया जलंताओ, सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरच्छिमेणं अण्णंमि कालोयगसमुद्दे बारस जोयण - सहस्साइं तं चैव सव्वं जाव चंदा देवा देवा । २०] एवं सूराणवि । वरं कालोयगपच्चत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयसमुद्दपुरत्थिमेणं बारस जोयणसहस्सा ओगाहित्ता तहेव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णंमि कालोयगसमुद्दे तहेव सव्वं । एवं पुक्खरवरगाणं चंदाणं पुक्खरवरस्स दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरसमुद्द बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता चंददीवा अण्णम्मि पुक्खररे दीवे रायहाणीओ तहेव । एवं सूराणवि दीवा पुक्खरवरदीवस्स पच्चत्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरोदं समुदं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ दीविल्लगाणं दीवे समुद्दगाणं समुद्दे. चेव एगाणं अब्भिंतरपासे एगाणं बाहिरपासे रायहाणीओ दीविल्लगाणं दीवेसु समुद्दगाणं समुद्देसु सरिणामएसु । १६५. हे भगवन् ! कालोदधिसमुद्रगत चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहां हैं? हे गौतम! कालोदधि - समुद्र के पूर्वीय वेदिकान्त से कालोदधिसमुद्र के पश्चिम में बारह हजार योजन आगे जाने पर कालोदधिसमुद्र के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं । ये सब ओर से जलांत से दो कोस ऊंचे हैं। शेष सब पूर्ववत् कहना चाहिए यावत् राजधानियां अपने-अपने द्वीप के पूर्व में असंख्य द्वीप- समुद्रों के बाद अन्य कालोदधिसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर आती हैं, आदि सब पूर्ववत् यावत् वहां चन्द्रदेव हैं । I इसी प्रकार कालोदधिसमुद्र के सूर्यद्वीपों के संबंध में भी जानना चाहिए। विशेषता यह है कि कालोदधिसमुद्र के पश्चिम वेदिकान्त से और कालोदधिसमुद्र के पूर्व में बारह हजार योजन आगे जाने पर ये आते हैं । इसी तरह पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् इनकी राजधानियां अपने-अपने द्वीपों के पश्चिम में अन्य कालोदधि में हैं। आदि सब पूर्ववत् कहना चाहिए । इसी प्रकार पुष्करवरद्वीप के पूर्वी वेदिकांत से पुष्करवरसमुद्र में 'बारह हजार योजन आगे जाने पर चन्द्रद्वीप हैं, इत्यादि पूर्ववत् । अन्य पुष्करवरसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर चन्द्रद्वीप हैं, इत्यादी पूर्ववत् । अन्य पुष्करवरद्वीप में उनकी राजधानियां हैं । राजधानियां के सम्बन्ध में सब पूर्ववत् जानना चाहिए। इसी तरह से पुष्करवरद्वीपगत सूर्यो के सूर्यद्वीप पुष्करवरद्वीप के पश्चिमी वेदिकान्त से पुष्करवरसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर स्थित हैं, आदि पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् राजधानियां अपने द्वीपों की पश्चिमी दिशा में तिर्यक् असंख्यात द्वीप - समुद्रों को लांधने के बाद अन्य पुष्करवरद्वीप में बारह हजार योजन की दूरी पर हैं। पुष्करवरसमुद्रगत सूर्यों के सूर्यद्वीप पुष्करवरसमुद्र के पूर्वी वेदिकान्त से पश्चिमदिशा में बारह हजार योजन आगे जाने पर स्थित हैं । राजधानियां अपने द्वीपों की पूर्वदिशा में तिर्यक् असंख्यात द्वीप समुद्रों का उल्लघन करने पर अन्य पुष्करवरसमुद्र में बारह हजार योजन से परे हैं।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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