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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :धातकीखंडद्वीपगत चन्द्रद्वीपों का वर्णन] [१९ द्वीप-समुद्रों को पार करने पर अन्य लवणसमुद्र में है, आदि सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। हे भगवन् ! बाह्य लावणिक सूर्यों के सूर्यद्वीप नाम के द्वीप कहां हैं? गौतम ! लवणसमुद्र की पश्चिमी वेदिकान्त से लवणसमुद्र के पूर्व में बारह हजार योजन जाने पर बाह्य लावणिक सूर्यों के सूर्यद्वीप नामक द्वीप हैं, जो धातकीखण्ड द्वीपांत की तरफ साढे अठ्यासी योजन और ४०/९५ योजन जलांत से ऊपर हैं और लवणसमुद्र की तरफ जलांत से दो कोस ऊँचे हैं। शेष सब वक्तव्यता राजधानी पर्यन्त पूर्ववत् कहनी चाहिए। ये राजधानियां अपने-अपने द्वीपों से पश्चिम में तिर्यक् असंख्यात द्वीप-समुद्र पार करने के बाद अन्य लवणसमुद्र में बारह हजार योजन के बाद स्थित हैं , आदि सब कथन करना चाहिए। धातकीखंडद्वीपगत चन्द्रद्वीपों का वर्णन १६४. कहि णं भंते ! धायइसंडदीवगाणं चंदाणं चंददीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! धायइसंडस्स दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयं णं समुदं बारस जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं धायइसंडदीवाणं चंदाणं णामं दीवा पण्णत्ता, सव्वओ समंता दो कोसा ऊसिया जलंताओ बारस जोयणसहस्साइं तहेव विक्खंभ-परिक्खेवो भूमिभागो पासायवडिंसगा मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा अट्ठो तहेव रायहाणीओ, सकाणं दीवाणं पुरत्थिमेणं अण्णंमि धायइसंडे दीवे सेसं तं चेव। एवं सूरदीवावि । नवरं धायइसंडस्स दीवस्स पच्चथिमिल्लाओ वेदियंताओ कालोयणं समुद्घ बारस जोयणसहस्साइं तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ सूराणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं अण्णंमि धायइसंडे दीवे सव्वं तहेव। १६४. हे भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहां है। गौतम ! धातकीखण्डद्वीप की पूर्वी वेदिकान्त से कालोदधिसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर धातकीखण्ड के चन्द्रों के चन्द्रद्वीप हैं । (धातकीखण्ड में १२ चन्द्र हैं।) वे सब ओर से जलांत से दो कोस ऊँचे हैं। ये बारह हजार योजन के लम्बे-चौड़े हैं। इनकी परिधि, भूमिभाग, प्रासादावतंसक, मणिपीठिका, सपरिवार सिंहासन, नाम-प्रयोजन, राजधानियां आदि पूर्ववत् जानना चाहिए। वे राजधानियां अपने-अपने द्वीपों से पूर्वदिशा में अन्य धातकीखण्डद्वीप में हैं। शेष सब पूर्ववत् । इसी प्रकार धातकीखण्ड के सूर्यद्वीपों के विषय में भी कहना चाहिए। विशेषता यह है कि धातकीखण्डद्वीप की पश्चिमी वेदिकान्त से कालोदधिसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर ये द्वीप आते हैं। इन सूर्यों की राजधानियां सूर्यद्वीपों के पश्चिम में असंख्य द्वीपसमुद्रों के बाद अन्य धातकी खण्डद्वीप में हैं , आदि सब वक्तव्यता पूर्ववत् जाननी याहिए। कालोदधिसमुद्रगत चन्द्रद्वीपों का वर्णन १६५. कहि णं भंते ! कालोयगाणं चंदाणं चंददीवा पण्णत्ता ?
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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