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________________ १८] [जीवाजीवाभिगमसूत्र गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं अन्भिंतरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता। जहा जम्बुद्दीवगा चंदा तहा भाणियव्वा, णवरि रायहाणीओ अण्णंमि लवणे सेसं तं चेव। एवं अभितरलावणगाणं सूराणवि लवणसमुदं बारस जोयणसहस्साइं तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ। कहि णं भंते ! बाहिरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! लवणसमुद्दस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ लवणसमुदं पच्चत्थिमेणं बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं बाहिरलावणगाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता, धायइसंडदीवंतेणं अद्धेकोणणवतिजोयणाइं चत्तालीसं च पंचणउतिभागे जोयणस्स ऊसिया जलंताओ, लवणसमुदंतेणं दो कोसे ऊसिया बारस जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खभेणं पउमवरवेइया वनसंडा बहुसमरमणिजा भूमि-भागा मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा सो चेव अट्ठो रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पुरथिमेणं तिरियमसंखेजे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अण्णमि लवणसमुद्दे तहेव सव्वं । कहि णं भंते ! बाहिरलावणगाणं सूराणं सूरदीवा णाम दीवा पण्णत्ता ? गोयमा ! लवणसमुद्दपच्चस्थिमिल्लाओ वेदियंताओ लवणसमुदं पुरथिमेणं बारस जोयणसहस्साइं धायइसंडदीवंतेणं अद्धकोणणउइं जोयणाई चत्तालीसं च पंचणउइभागे जोयणस्स दो कोसे ऊसिया सेसं तहेव जाव रायहाणीओ सगाणं दीवाणं पच्चत्थिमेणं तिस्यिमसंखेज्जे लवणे चेव बारस जोयणा तहेव सव्वं भाणियव्वं। १६३. हे भगवन् ! लवणसमुद्र में रहकर जम्बूद्वीप की दिशा मे शिखा से पहले विचरने वाले (आभ्यन्तर लावणिक) चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप कहां हैं? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरूपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर आभ्यन्तर लावणिक चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप हैं । जैसे जम्बूद्वीप के चन्द्रद्वीपों का वर्णन किया, वैसा इनका भी कथन करना चाहिए। विशेषता यह है कि इनकी राजधानियां अन्य लवणसमुद्र में हैं, शेष पूर्ववत् कहना चाहिए। इसी तरह आभ्यन्तर लावणिक सूर्यों के सूर्यद्वीप लवणसमुद्र में बारह हजार योजन जाने पर वहां स्थित हैं , आदि सब वर्णन राजधानी पर्यन्त चन्द्रद्वीपों के समान जानना चाहिए। हे भगवन् ! लवणसमुद्र में रह कर शिखा से बाहर विचरण करने वाले बाह्य लावणिक चन्द्रों के चन्द्रद्वीप कहां हैं? गौतम ! लवणसमुद्र की पूर्वीय वेदिकान्त से लवणसमुद्र के पश्चिम में बारह हजार योजन जाने पर बाह्य लावणिक चन्द्रों के चन्द्रद्वीप नामक द्वीप हैं, जो धातकीखण्डद्वीपान्त की तरफ साढ़े अठ्यासी योजन और ४०/९५ योजन जलांत से ऊपर हैं और लवणसमुद्रान्त की तरफ जलांत से दो कोस ऊँचे हैं। ये बारह हजार योजन के लम्बे-चौड़े , पद्मवरवेदिका, वनखण्ड, बहुसमरमणीय भूमिभाग, मणिपीठिका, सपरिवार सिंहासन, नाम का प्रयोजन, राजधानियां जो अपने-अपने द्वीप के पूर्व में तिर्यक् असंख्यात
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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