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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: जम्बूद्वीपगत चन्द्रद्वीपों का वर्णन ] [ १७ जम्बूद्वीपगत दो चन्द्रों के दो चन्द्रद्वीप कहे गये हैं। ये द्वीप जम्बूद्वीप की दिशा में साढ़े अठासी (८८१/२) योजन और ४०/९५ योजन पानी से ऊपर उठे हुए हैं और लवणसमुद्र की दिशा में दो कोस पानी से ऊपर उठे हुए हैं। ये बारह हजार योजन लम्बे-चौड़े हैं: शेष परिधि आदि सब वक्तव्यता गौतमद्वीप की तरह जाननी चाहिए। ये प्रत्येक पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से परिवेष्ठित हैं। दोनों का वर्णनक कहना चाहिए। उन द्वीपों में बहुसमरमणीय भूमिभाग कहे गये हैं यावत् वहां बहुत से ज्योतिष्क देव उठतेबैठते हैं । उन बहुसमरमणीय भागों में प्रासादावतंसक हैं, जो साढ़े बासठ योजन ऊँचे हैं, आदि वर्णन गौतमद्वीप की तरह जानना चाहिए। मध्यभाग में दो योजन की लम्बी चौड़ी, एक योजन मोटी मणिपीठिकाएं हैं, इत्यादि सपरिवार सिंहासन पर्यन्त पूर्ववत् कहना चाहिए । - हे भगवन् ! ये चन्द्रद्वीप क्यों कहलाते हैं ? गौतम ! उन द्वीपों की बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ीया आदि में बहुत से उत्पलादि कमल हैं, जो चन्द्रमा के समान आकृति और आभा (वर्ण) वाले है और वहां चन्द्र नामक महर्द्धिक देव, जो पल्योपम की स्थिती वाले हैं, रहते हैं । वे वहां अलग-अलग चार हजार सामानिक देवों यावत् चन्द्रद्वीपों और चन्द्रा राजधानियों और अन्य बहुत से ज्योतिष्क देवों और देवियों का आधिपत्य करते हुए अपने पुण्य कर्मों का विपाकानुभव करते हुए विचरते हैं । इस कारण हे गौतम ! वे चन्द्रद्वीप कहलाते हैं । हे गौतम ! वे चन्द्रद्वीप द्रव्यापेक्षया नित्य हैं अतएव उनके नाम भी शाश्वत हैं । हे भगवन्। जम्बूद्वीप के चन्द्रों की चन्द्रा नामक राजधानियां कहां हैं? गौतम ! चन्द्रद्वीपों के पूर्व में तिर्यक् असंख्य द्वीप समुद्रों को पार करने पर अन्य जम्बूद्वीप में बारह हजार योजन आगे जाने पर वहां ये राजधानियां हैं। उनका प्रमाण आदि पूर्वोक्त गौतमादि राजधानियां की तरह जानना चाहिए यावत् वहां चन्द्र नामक महर्द्धिक देव हैं। हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के दो सूर्यो के दो सूर्यद्वीप कहां है ? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरूपर्वत के पश्चिम में लवणसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर जम्बूद्वीप के दो सूर्यो के दो सूर्यद्वीप हैं । उनका उच्चत्व, आयाम - विष्कंभ, परिधि, वेदिका, वनखण्ड, भूमिभाग, वहां देव-देवियों का बैठनाउठना, प्रासादावतंसक, उनका प्रमाण, मणिपीठिका, सपरिवार सिंहासन आदि चन्द्रद्वीप की तरह कहना चाहिए। हे भगवन् ! सूर्यद्वीप, सूर्यद्वीप क्यों कहलाते है ? हे गौतम! उन द्वीपों की बावड़ियों आदि में सूर्य के समान वर्ण और आकृति वाले बहुत सारे उत्पल आदि कमल हैं, इसलिए वे सूर्यद्वीप कहलाते हैं । सूर्यद्वीप द्रव्यपेक्षया नित्य हैं। अतएव इनका नाम भी शाश्वत है। इनमें सूर्य देव, सामानिक देव आदि का यावत् ज्योतिष्क देव - देवियों का आधिपत्य करते हुए विचरते हैं यावत् इनकी राजधानियां अपनेअपने द्वीपों से पश्चिम में असंख्यात द्वीप समुद्रों को पार करने के बाद अन्य जम्बूद्वीप में बारह हजार योजन आगे जाने पर स्थित हैं । उनका प्रमाण आदि पूर्वोक्त चन्द्रादि राजधानियों की तरह जानना चाहिए यावत् वहां सूर्य नामक महर्द्धिक देव हैं। १६३. कहि णं भंते ! अब्भितरलावणगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता ?
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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