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[जीवाजीवाभिगमसूत्र हे भगवान ! लवणाधिपति सुस्थित देव की सुस्थिता नाम की राजधानी कहां है?
गौतम ! गौतमद्वीप के पश्चिम में तिरछे असंख्य द्वीप-समुद्रों को पार करने के बाद अन्य लवणसमुद्र में सुस्थिता राजधानी है, जो अन्य लवणसमुद्र में बारह योजन आगे जाने पर आती है, इत्यादि सब वक्तव्यता गोस्तूप राजधानीवत् जाननी चाहिए यावत् वहां सुस्थित नाम का महर्द्धिक देव है। जम्बूद्वीपगत चन्द्रद्वीपों का वर्णन
१६२. कहि णं भंते ! जंबूद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता?
गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुदं बारसजोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंददीवा णामं दीवा पण्णत्ता, जंबुद्दीवंतेणं अद्धकोणणउड़ जोयणाइं चत्तालीसं पंचाणउई भागे जो यणस्स ऊसिया जलंताओ, लवणसमुदंतेणं दो कोसे ऊसिया जलंताओ, बारसजोयणसहस्साई आयामविक्खंभेणं सेसं तं चेव जहा गोयमदीवस्स परिक्खे वो। पउम-वर वेइया पत्ते यं-पत्तेयं वणसंड परिक्खित्ता, दोण्ह वि वण्णओ, बहुसमरमणिजभूमिभागा जाव जोइसिया देवा आसयंति।
तेसिं णं बहुसमरमणिजे भूमिभागे पासायवडेंसगा बासठिं जोयणाई बहुमज्झदेसभागे मणि-पेढियाओ दो जोयणाई जाव सीहासणा सपरिवारा भाणियव्वा तहेब अट्ठोः गोयमा ! बहुस खुड्डासु खुड्डियासु बहूई उप्पलाइं चंदवण्णाभाई चंदा एत्थ देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्ठितिया परिवसंति।
ते णं तत्थ पत्तेयं पत्तेयं चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव चंददीवाणं चंदाण य रायहाणीणं . अन्नेसिं य बहूणं जोइसियाणं देवाणं देवीणं य आहेवच्चं जाव विहरंति। से तेणढेणं गोयमा ! चंदद्दीवा जाव णिच्चा।
कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं चंदाणं चंदाओ नाम रायहाणीओ पण्णत्ताओ?
गोयमा ! चंदद्दीवाणं पुरत्थिमेणं तिरियं जाव अण्णम्मि जंबुद्दीवे दीवे बारस जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता तं चेव पमाणं जाव महड्डिया चंदा देवा।
कहि णं भंते ! जंबुद्दीवगाणं सूराणं सूरदीवा णामं दीवा पण्णत्ता ?
गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता तं चेव उच्चत्तं आयामविक्खंभेणं परिक्खेवो वेदिया, वनसंडो, भूमिभागा जाव आसयंति, पासायवडेंसगाणं तं चेव पमाणं मणिपेढिया सीहासणा सपरिवारा अठ्ठो उप्पलाई सूरप्पभाई सूरा एत्थ देवा जाव रायहाणीओ सगाणं पच्चत्थिमेणं अण्णम्मि जंबुद्दीवे दीवे सेसं तं चेव जाव सूरा देवा।
१६२. हे भगवन ! जम्बूद्वीपगत दो चन्द्रमाओं के दो चन्द्रद्वीप कहां पर हैं? गौतम! जम्बूद्वीप के मेरूपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर वहां