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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : लवणशिखा की वक्तव्यता] [११ हे भगवन् ! गोस्तूप आवासपर्वत, गोस्तूप आवासपर्वत क्यों कहा जाता है? __ हे गौतम! गोस्तूप आवासपर्वत पर बहुत-सी छोटी-छोटी बावड़ियां आदि हैं, जिनमें गोस्तूप वर्ण के बहुत सारे उत्पल कमल आदि हैं यावत् वहां गोस्तूप नामक महर्द्धिक और एक पल्योपम की स्थितिवाला देव रहता है । वह गोस्तूप देव चार हजार सामानिक देवों यावत् गोस्तूप आवास पर्वत और गोस्तूपा राजधानी का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। इस कारण वह गोस्तूप आवास पर्वत कहा जाता है । यावत् वह गोस्तूपा आवासपर्वत (द्रव्य से) नित्य है । अतएव उसका यह नाम अनादिकाल से चला आ रहा है। हे भगवन् ! गोस्तूप देव की गोस्तूपा राजधानी कहां है? हे गौतम! गोस्तूप आवासपर्वत के पूर्व में तिर्यदिशा में असंख्यात द्वीप-समुद्र पार करने के बाद अन्य लवणसमुद्र में गोस्तूपा राजधानी है। उसका प्रमाण आदि वर्णन विजया राजधानी की तरह कहना चाहिए। १५९. (आ) कहि णं भंते ! सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दओभासणामे आवासपव्वए पण्णत्ते? गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दक्खिणेणं लवणसमुदं बायालीसं 'जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं सिवगस्स वेलंधरणागरायस्स दोभासे णामं आवासपव्वए पण्णत्ते, तं चेव पमाणं जं गोथूभस्स, णवरि सव्वअंकामए अच्छे जाव पडिरूवे जाव अट्ठो भाणियव्वो। गोयमा ! दोभासे णं आवासपव्वए लवणसमुद्दे अट्ठजोयणियखेत्ते दगं सव्वओ समंता ओभासेइ, उज्जोवेइ, तवेइ, पभासेइ, सिवए एत्थ देवे महिड्डिए जाव रायहाणी से दक्खिणेणं सिविगा दओभासस्स सेसं तं चेव। कहि णं भंते ! संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णामं आवासपव्वए पण्णत्ते ? · गोयमा ! जंबुद्दीवे णं दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं बायालीसं जोयणसहस्साई एत्थ णं संखस्स वेलंधरणागरायस्स संखे णामं आवासपव्वए, तं चेव पमाणं, णवरं सव्वरयणामए अच्छे। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसंडेण जाव अट्ठो बहूओ खुड्डा खुड्डियाओ जाव बहूई उप्पलाई संखाभाई संखवण्णाई। संखे एत्थ देवे महिड्ढिए जाव रायहाणीए, पच्चत्थिमेणं संखस्स आवास-पव्वयस्स संखा नाम रायहाणी, तं चेव पमाणं। कहि णं भंते ! मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स उदगसीमाए णामं आवासपव्वए पण्णत्ते? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स उत्तरेणं लवणसमुदं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स उदगसीमाए णामं आवासपव्वए पण्णत्ते, तं चेव पमाणं। णवरि सव्वफलिहामए अच्छे जाव अट्ठोः गोयमा ! दगसीमंते णं आवासपव्वए सीतासीतोदगाणं महाणदीणं तत्थ गए सोए पडिहम्मइ, से तेणद्वेणं जाव णिच्चे, मणोसिलए एत्थ देवे महिड्डिए जाव से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव विहरइ। कहि णं भंते ! मणोसिलगस्स वेलंधरणागरायस्स मणोसिलाणामं रायहाणी ? गोयमा !
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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