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[ जीवाजीवाभिगमसूत्र
गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स उवरिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव आसयंति। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं एगे महं पासायवडेंसए बावट्ठ जोयणद्धं च उड्ढं उच्चत्तेणं तं चेव पमाणं अद्धं आयामविक्खंभेणं वण्णओ जाव सीहासणं सपरिवारं ।
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सेकेणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ गोथूभे आवासपव्वए गोथूभे आवासपव्वए ?
गोयमा ! गोथूभे णं आवासपव्वए तत्थ तत्थ देसे तहिं तहिं बहुओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव गोभवणाई बहुई उप्पलाई तहेव जाव गोथूभे तत्थ देवे महिड्डिए जाव पलिओवमट्ठईए परिवसति । से णं तत्थ चउण्हं सामाणियसाहस्सीणं जाव गोथूभयस्स आवासपव्वयस्स गोथूभाए रायहाणीए
वह । सेट्ठेणं जाव णिच्चा ।
रायहाणी पुच्छा ? गोयमा ! गोथूभस्स आवासपव्वयस्स पुरत्थिमेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अण्णम्मि लवणसमुद्दे तं चेव पमाणं तहेव सव्वं ।
१५९. (अ) हे भगवन् ! वेलंधर नागराज कितने कहे गये हैं ? गौतम ! वेलंधर नागराज चार कहे गये हैं, उनके नाम हैं गोस्तूप, शिवक, शंख और मनःशिलाक ।
हे भगवन् ! इन चार वेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत कहे गये हैं ? गौतम! चार आवासपर्वत कहे गये हैं । उनके नाम हैं - गोस्तूप, उदकभास, शंख और दकसीम।
हे भगवन् ! गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप नामक आवासपर्वत कहां है ?
गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरूपर्वत के पूर्व में लवणसमुद्र में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप नाम का आवासपर्वत है। वह सत्रह सौ इक्कीस ( १७२१) योजन ऊँचा, चार सौ तीस योजन एक कोस पानी में गहरा, मूल में दस सौ बाईस (१०२२) योजन लम्बा-चौड़ा, बीच में सात सौ तेईस (७२३) योजन लम्बा-चौड़ा और ऊपर चार सौ चौबीस (४२४) योजन लम्बा-चौड़ा है। उसकी परिधि मूल में तीन हजार दो सौ बत्तीस (३२३२) योजन से कुछ कम, मध्य में दो हजार दो सौ चौरासी (२२८४) योजन से कुछ अधिक और ऊपर एक हजार तीन सौ इकतालीस (१३४१) योजन से कुछ कम है। यह मूल में विस्तीर्ण मध्य में संक्षिप्त और ऊपर पतला है, गोपुच्छ के आकार से संस्थित है, सर्वात्मना कनकमय है, स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है ।
वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड से चारों ओर से परिवेष्टित है। दोनों का वर्णन कहना चाहिए ।
गोस्तूप आवासपर्वत के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग कहा गया है, आदि सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए यावत् वहां बहुत से नागकुमार देव और देवियां स्थित होती हैं । उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के बहुमध्य देशभाग में एक बड़ा प्रासादावतंसक है जो साढ़े बासठ योजन ऊँचा है, सवा इकतीस योजन का लम्बा-चौड़ा है, आदि वर्णन विजयदेव के प्रासादावतंसक के समान जानना चाहिए यावत् सपरिवार सिंहासन का कथन करना चाहिए ।