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________________ १२] [जीवाजीवाभिगमसूत्र दगसीमस्स आवासपव्वयस्स उत्तरेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अण्णम्मि लवणसमुद्दे एत्थ णं मणोसिलिया णामं रायहाणी पण्णत्ता, तं चेव पमाणं जाव मणोसिलए देवे। कणगंकर यय-फालिहमया य वेलंधराणमावासा। अणुवेलंधर राईण पव्वया होति र यणमया॥ १५९. (आ) हे भगवन् ! शिवक वेलंधर नागराज का दकाभास नामक आवास पर्वत कहां है? गौतम! जम्बूद्वीप के मेरूपर्वत के दक्षिण में लवणसमुद्र में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर शिवक वेलंधर नागराज का दकाभास नाम का आवासपर्वत है। जो गोस्तूप आवासपर्वत का प्रमाण है, वही इसका प्रमाण है । विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना अंकरत्नमय है , स्वच्छ है यावत् प्रतिरूप है । यावत् यह दकाभास क्यों कहा जाता है? गौतम ! लवणसमुद्र में दकाभास नामक आवासपर्वत आठ योजन के क्षेत्र में पानी को सब ओर अति विशुद्ध अंकरत्नमय होने से अपनी प्रभा से अवभासित करता है, (चन्द्र की तरह) उद्योतित करता है, (सूर्य की तरह) तापित करता है, (ग्रहों की तरह) चमकाता है तथा शिवक नाम का महर्द्धिक देव यहां रहता है, इसलिए यह दकाभास कहा जाता है। यावत् शिवका राजधानी का आधिपत्य करता हुआ विचरता है । वह शिवका राजधानी दकाभास पर्वत के दक्षिण में अन्य लवणसमुद्र में है, आदि कथन विजया राजधानी की तरह कहना चाहिए। हे भगवन् ! शंख नामक वेलंधर नागराज का शंख नामक आवासपर्वत कहां है? गौतम ! जम्बूद्वीप के मेरूपर्वत के पश्चिम में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर शंख वेलंधर नागराज का शंख नामक आवासपर्वत है। उसका प्रमाण गोस्तप की तरह है। विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना रत्नमय है, स्वच्छ है । वह एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड से घिरा हुआ है यावत् यह । शंख नामक आवासपर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम! उस शंख आवासपर्वत पर छोटी छोटी बावड़िया आदि हैं, जिनमें बहुत से कमलादि हैं । जो शंख की आभावाले, शंख के रंगवाले हैं और शंख की आकृति वाले हैं तथा वहां शंख नामक महर्द्धिक देव रहता है । वह शंख नामक राजधानी का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। शंख नामक राजधानी शंख आवासपर्वत के पश्चिम में है, आदि विजया राजधानीवत् प्रमाण आदि कहना चाहिए। हे भगवन् ! मन:शिलक वेलंधर नागराज का दकसीम नामक आवासपर्वत किस स्थान पर है? हे गौतम! जम्बूद्वी के मेरूपर्वत की उत्तर दिशा में लवणसमुद्र में बयालीस हजार योजन आगे जाने पर मन:शिलक वेलंधर नागराज का दकसीम नाम का आवासपर्वत है। उसका प्रमाण आदि पर्ववत कहना चाहिए। विशेषता यह है कि यह सर्वात्मना स्फटीक रत्नमय है, स्वच्छ है यावत् यह दकसीम क्यों कहा जाता है ? गौतम ! इस दकसीम आवासपर्वत से शीता-शीतोदा महानदियों का प्रवाह यहां आकर प्रतिहत हो जाता है-लौट जाता है। इसलिए यह उदक की सीमा करने वाला होने से “दकसीम" कहलाता है। यह शाश्वत (नित्य) है इसलिए यह नाम अनिमित्तक भी है। यहां मन:शिलक नाम का महर्द्धिक देव रहता है यावत् वह चार हजार सामानिक देवों आदि का आधिपत्य करता हुआ विचरता है। हे भगवन् ! मन:शिलक वेलंधर नागराज की मन:शिला राजधानी कहां है? गौतम ! दकसीम
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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