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________________ ८] [ जीवाजीवाभिगमसूत्र वा? गोयमा! लवणसिहा णं दस जोयणसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं देसूणं अद्धजोयणं अइरेगं वड्ढइ वा हायइ वा । लवणस्स णं भंते । समुद्दस्स कति णागसाहस्सीओ अब्भितरियं वेलं धारेंति ? कइ नागसाहस्सीओ वाहिरियं वेलं धारेंति ? कइ नागसाहस्सीओं अग्गोदयं धारेंति ? गोयमा ! लवणसमुद्दस्स बायालीसं णागसाहस्सीओ अब्भितरियं वेलं धारेंति, बावत्तरिं नागसाहस्सीओ बाहिरियं वेलं धारेंति, सठि णागसाहस्सीओ अग्गोदयं धारेंति, एवमेव सपुव्वावरेण एगा णागसयसाहस्सी चोवतरिं च णागसहस्सा भंवतीति मक्खाया। १५८. हे भगवन्! लवणसमुद्र की शिखा चक्रवालविष्कम्भ से कितनी चौड़ी है और वह कितनी बढ़ती है और कितनी घटती है ? हे गौतम! लवणसमुद्र की शिखा चक्रवालविष्कंभ की अपेक्षा दस हजार योजन चौड़ी है और कुछ कम आधे योजन तक वह बढती है और घटती है । हे भगवन्! लवणसमुद्र की आभ्यन्तर वेला को कितने हजार नागकुमार देव धारण करते हैं ? बाह्य वेला को कितने हजार नागकुमार देव धारण करते हैं? कितने हजार नागकुमार देव अग्रोदक को धारण करते हैं ? गौतम ! लवणसमुद्र की आभ्यन्तर वेला को बयालीस हजार नागकुमार देव धारण करते हैं । बाह्यवेला को बहत्तर हजार नागकुमार देव धारण करते हैं। साठ हजार नागकुमार देव अग्रोदक को धारण करते हैं । इस प्रकार सब मिलाकर इन नागकुमारों की संख्या एक लाख चौहत्तर हजार कही गई है । विवेचन- लवणसमुद्र की शिखा सब ओर से चक्रवालविष्कंभ से समप्रमाण वाली और दस हजार योजन चक्रवाल विस्तार वाली है । वह शिक्षा कुछ कम अर्धयोजन (दो कोस) प्रमाण अतिशय से बढ़ती है और उतनी ही घटती है। इसकी स्पष्टता इस प्रकार है लवणसमुद्र में जम्बूद्वीप से और धातकीखण्ड द्वीप से पंचानवै-पंचानवै हजार योजन तक गोतीर्थ है । गोतीर्थ का अर्थ है तडागादि में प्रवेश करने का क्रमशः नीचे-नीचे का भूप्रदेश । मध्यभाग का अवगाह दस हजार योजन का है। जम्बूद्वीप की वेदिकान्त के पास और धातकीखण्ड की वेदिका के पास अंगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण गोतीर्थ है। इसके आगे समतल भूभाग से लेकर क्रमश: प्रदेशहानि से तब तक उत्तरोत्तर नीचा-नीचा भूभाग समझना चाहिए, जहां तक पंचानवै हजार योजन की दूरी आ जाय । पंचानवै हजार योजन की दूरी तक समतल भूभाग की अपेक्षा एक हजार योजन की गहराई है। इसलिए जम्बूद्वीपवेदिका और धातकीखण्डवेदिका के पास उस समतल भूभाग में जलवृद्धि अंगुलासंख्येय भाग प्रमाण होती है। इससे आगे समतल भूभाग में प्रदेशवृद्धि से जलवृद्धि क्रमश: बढ़ती हुई जाननी चाहिए, जब तक दोनों ओर ९५ हजार योजन की दूरी आ जाय। यहां समतल भूभाग की अपेक्षा सात सौ योजन की जलवृद्धि होती है । अर्थात वहां समतल भूभाग से एक हजार योजन की
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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