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________________ सर्वजीवाभिगम] [१८३ अन्तरद्वार-भाषक का अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त है और उत्कर्ष से अनन्तकाल-वनस्पतिकाल है। अभाषक रहने का जो काल है, वही भाषक का अन्तर है। सादि-अपर्यवसित अभाषक का अन्तर नहीं है। क्योंकि वह अपर्यवसित है। सादि-सपर्यवसित का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि भाषक का काल ही अभाषक का अन्तर है। भाषक का काल जघन्य एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त ही है। अल्पबहुत्वसूत्र स्पष्ट ही है। सशरीरी और अशरीरी की वक्तव्यता सिद्ध और असिद्धवत् जाननी चाहिए। २३६. अथवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-चरिमा चेव अचरिमा चेव। चरिमे णं भत्ते! चरिमेत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! चरिमे अणाइए सपज्जवसिए। अचरिमे दुविहे पण्णत्ते-अणाइए वा अपजवसिए, साइए वा अपजवसिए। दोण्हंपि णत्थि अंतरं। ___ अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा अचरिमा, चरिमा अणंतुगा। (सेत्तं दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता।) . २३६. अथवा सर्व जीव दो प्रकार के हैं-चरम और अचरम। भगवन् ! चरम, चरमरूप में कितने काल तक रहता है? गौतम! चरम अनादि-सपर्यवसित है। अचरम दो प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित और सादिअपर्यवसित । दोनों का अन्तर नहीं है। अल्पबहुत्व में थोड़े अचरम हैं, उनसे चरम अनन्तगुण हैं । (यह सर्व जीवों की दो भेदरूप प्रतिपत्ति पूरी हुई।) विवेचन-चरम और अचरम के रूप में सर्व जीवों के दो भेद इस सूत्र में वर्णित हैं। चरम भव वाले भव्य विशेष जो सिद्ध होंगे, वे चरम कहलाते हैं । इनसे विपरीत अचरम कहलाते हैं । ये अचरम हैं अभव्य और सिद्ध। ___कायस्थितिसूत्र में चरम अनादि-सपर्यवसित हैं अन्यथा वह चरम नहीं कहा जा सकता। अचरमसूत्र में अचरम दो प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित और सादि-अपर्यवसित। अनादि-अपर्यवसित-अचरम अभव्य जीव है और सादि-अपर्यवसित-अचरम सिद्ध हैं। अन्तरद्वार में दोनों का अन्तर नहीं है। अनादि-सपर्यवसित-चरम का अन्तर नहीं है, क्योंकि चरमत्व के जाने पर पुनः चरमत्व सम्भव नहीं है। अचरम चाहे अनादि-अपर्यवसित हो, चाहे सादिअपर्यवसित हो, उसका अन्तर नहीं है, क्योंकि इनका चरमत्व होता ही नहीं। ___अल्पबहुत्वसूत्र में सबसे थोड़े अचरम हैं, क्योंकि अभव्य और सिद्ध ही अचरम हैं। उनसे चरम अनन्तगुण हैं। सामान्य भव की अपेक्षा से यह कथन समझना चाहिए, अन्यथा अनन्तगुण नहीं घट सकता। जैसा कि मूल टीकाकार ने कहा है-"चरम-अनन्तगुण हैं । सामान्य भव्यों की अपेक्षा से यह समझना चाहिए। सूत्रों का विषय-विभाग दुर्लक्ष्य है।" १. "चरमा अनन्तगुणाः, समान्यभव्यापेक्षमेतदिति भावनीयं, दुर्लक्ष्यः सूत्राणां विषयविभागः।"
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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