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________________ १८४] [ जीवाजीवाभिगमसूत्र इस प्रकार सर्व जीव सम्बन्धी द्विविध प्रतिपत्ति पूरी हुई। इसमें कही गई द्विविध वक्तव्यता को संग्रहीत करने वाली गाथा इस प्रकार है सिद्धसइंदियकाए जोए वेए कसायलेसा य । नाणुवओगाहारा भाससरीरी च चरमो य ॥ इसका अर्थ स्पष्ट ही है । सर्वजीव - त्रिविध-वक्तव्यता २३७. तत्थ णं जेते एवमाहंसु तिविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, ते एवमाहंसु तं जहासम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्मामिच्छादिट्ठी | सम्मदिट्ठी णं भंते! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सम्मदिट्ठी दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए । तत्थ जेते साइए सपज्जवसिए, से जहनेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाई साइरेगाई । मिच्छादिट्ठी तिविहे - साइए वा सपज्जवसिए अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए । तत्थ जेते साइए - सपज्जवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतकालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं । सम्मामिच्छादिट्ठी जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं । सम्मदिट्ठिस्स अंतरं साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं । साइयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसणं अणंतकालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियहं । मिच्छादिट्ठिस्स अणाइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, अणाइयस्स सपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं, साइयस्स सपज्जवसियस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसणं छावट्ठि सागरोवमाई साइरे गाई । सम्मामिच्छादिट्ठिस्स जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अनंतं कालं जाव अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं । अप्पाबहुयं सव्वत्थोवा सम्मामिच्छादिट्ठी, सम्पदिट्ठी अणंतगुणा, मिच्छादिट्ठी अनंतगुणा । २३७. जो ऐसा कहते हैं कि सर्व जीव तीन प्रकार हैं, उनका मंतव्य इस प्रकार है - यथा सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि | भगवन् ! सम्यग्दृष्टि काल से सम्यग्दृष्टि कब तक रह सकता है ? गौतम! सम्यग्दृष्टि दो प्रकार के हैं - सादि-अपर्यवसित और सादि सपर्यवसित। जो सादि-सपर्यवसित सम्यग्दृष्टि हैं, वे जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से साधिक छियासठ सागरोपम तक रह सकते हैं। मिथ्यादृष्टि तीन प्रकार के हैं - सादि- सपर्यवसित, अनादि- अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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