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________________ सर्वजीवाभिगम] [१८१ श्वासोच्छ्वास में कुछ अधिक सत्रह क्षुल्लकभव होते हैं। एक मुहूर्त में पैंसठ हजार पांच सौ छत्तीस (६५५३६) क्षुल्लकभव होते है। एक मुहूर्त में तीन हजार सात सौ तिहत्तर (३७७३) आनप्राण (श्वासोच्छ्वास) होते है। त्रैराशिक से एक उच्छ्वास में सत्रह क्षुल्लकभव प्राप्त होते है । पैंसठ हजार पांच सौ छत्तीस में तीन हजार सात सौ तिहत्तर का भाग देने से एक उच्छ्वास में भवों की संख्या प्राप्त होती है। उक्त भाग देने से १७ भव और १३९४ शेष बचता है, जिसकी आवलिकाएं कुछ अधिक ९४ होती है। ___ यदि हम एक आनप्राण में आवलिकाओं की संख्या जानना चाहते है तो २५६ में १७ का गुणा करके उसमें ऊपर की ९४ आवलिकाएं मिलानी चाहिए, तो ४४४६ आवलिकाएं होती हैं। यदि एक मुहूर्त में आवलिकाओं की संख्या जानना चाहते हैं तो ४४४६ एक श्वासोच्छ्वास की आवलिकाओं को एक मुहूर्त के श्वासोच्छ्वास ३७७३ से गुणा करने से १,६७,७४,७५८ आवलिका होती हैं । इसमें साधिक की २४५८ आवलिकाएं मिलाने से १,६७,७७,२१६ आवलिकाएं एक मुहूर्त में होती हैं। अथवा मुहूर्त ६५५३६ क्षुल्लकभवों को एक भव की २५६ आवलिकाओं से गुणा करने पर एक मुहूर्त में आवलिकाओं की संख्या ज्ञात हो जाती है। इसलिए जो कहा जाता है कि एक उच्छ्वासनिःश्वास में संख्येय आवलिकाएं हैं, सो समीचीन ही है। २३५. अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-सभासगा य अभासगा य। ____ सभासएं णं भंते! सभासएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । अभासए णं भंते! ०? गोयमा! अभासए दुविहे पण्णत्ते-साइए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपजवसिए। तत्थ णं जेसे साइए सपजवसिए से जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अणंतकालं-अणंता उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीओ वणस्सइकालो। भासगस्स णं भंते! केवइकालं अंतरं होई? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अणंतकालं वणस्सइकालो। अभासगस्स साइयस्स अपजवसियस्स णत्थि अंतरं। साइयसपज्जवसियस्स जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा भासगा, अभासगा अणंतगुणा। अहवा दुविहा सव्वजीवा भासगा, अभासगा अणंतगुणा। १. पनाटि सहस्साई पंचेव सया हवंति छत्तीसा। खुडागभवग्गह णा हर्वति अंतो मुहु त्तम्मि ॥ २. तिन्नि सहस्सा सत्त च सयाइ तेवत्तरिं च ऊसासा। एस मुहुत्तो भणिओ, सव्वेहिं अणंतणांणीहिं॥ ३. एगा कोडी सत्तट्ठि लक्ख सत्ततरी सहस्सा य। दोयसया सोलहि या आवलिया मुहु त्तम्मि ॥
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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