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________________ ११०] [जीवाजीवाभिगमसूत्र असंखिज्जाहिं उस्सप्पिणी-ओसप्पिणीहिं अवहीरंति नो चेव णं अवहिया सिया जाव सहस्सारे। आणतादिसु चउसु वि। गेवेज्जेसु अणुत्तरेसु य समए समए जाव केवइयं कालेणं अवहिया सिया? गोयमा! ते णं असंखेज्जा समए समए अवहीरमाणा पलिओवमस्स असंखेज्जइ भागमेत्तेणं अवहीरंति नो चेव णं अवहिया सिया। २०१. (इ) भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में विमान कितने बड़े हैं? गौतम! कोइ देव जो चुटकी बजाते ही इस एक लाख योजन के लम्बे-चौड़े और तीन लाख योजन से अधिक की परिधि वाले जम्बूद्वीप की २१ बार प्रदक्षिणा कर आवे, ऐसी शीघ्रतादि विशेषणों वाली गति से निरन्तर छह मास चलता रहे, तब वह कितनेक विमानों के पास पहुंच सकता है, उन्हें लांघ सकता है और कितनेक उन विमानों को नहीं लांघ सकता है, इतने बड़े वे विमान कहे गये हैं । इसी प्रकार का कथन अनुत्तरोपपातिक विमानों तक के लिए समझना चाहिए कि कितनेक विमानों को लांघ सकता है और कितनेक विमानों को नहीं लांघ सकता है। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प के विमान किसके बने हुए हैं? गौतम! वे सर्वरत्नमय हैं। उनमें बहुत से जीव और पुद्गल पैदा होते हैं, च्यवित होते हैं , इकट्ठे होते हैं और वृद्धि को प्राप्त करते हैं। वे विमान द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से शाश्वत हैं और स्पर्श आदि पर्यायों की अपेक्षा अशाश्वत हैं। ऐसा ही कथन अनुत्तरोपपातिक विमानों तक समझना चाहिए। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में देव कहां से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! सम्मूर्छिम जीवों को छोड़कर शेष पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनुष्यों में से आकर जीव सौधर्म और ईशान में देवरूप से उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार प्रज्ञापना के छठे व्युत्क्रान्तिपद में जैसा उत्पाद कहा है वैसा यहां कह लेना चाहिए। (सहस्रार देवलोक तक उक्त रीति से तथा आगे केवल मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते है ।) अनुत्तरोपपातिक विमानों तक व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार कहना चाहिए। ___भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प में एक समय में कितने देव उत्पन्न होते हैं? गौतम! जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात और असंख्यात जीव उत्पन्न होते हैं । यह कथन सहस्रार देवलोक तक कहना चाहिए। आनत आदि चार कल्पों में, नवग्रैवेयको में और अनुत्तरविमानों में जघन्य एक, दो, तीन यावत् उत्कृष्ट संख्यात जीव उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! सौधर्म-ईशानकल्प के देवों में से यदि प्रत्येक समय में एक-एक का अपहार किया जायेनिकाला जाये तो कितने काल में वे खाली हो सकेंगे? गौतम! वे देव असंख्यात हैं अत: यदि एक समय में एक देव का अपहार किया जाये तो असंख्यात उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों तक अपहार का यह क्रम चलता रहे तो भी वे कल्प खाली नहीं हो सकते । उक्त कथन सहस्रार देवलोक तक करना चाहिए। आगे के आनतादि चार कल्पों में, ग्रैवेयकों में तथा अनुत्तर विमानों के देवों के अपहार सम्बन्धी प्रश्न के उत्तर में कहना चाहिए कि वे असंख्यात हैं अतः समय-समय में एक-एक का अपहार करने का क्रम पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक चलता रहे तो भी उनका अपहार पूरा नहीं हो सकता। (यह अपहार कभी हुआ नहीं, होगा नहीं, केवल संख्या बताने के लिए के लिए कल्पनामात्र है।)
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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